रमेशराज का ‘ सर्पकुण्डली राज छंद ‘ अनुपम + ज्ञानेंद्र साज़
श्री रमेशराज किसी परिचय के मोहताज नहीं | ग़ज़ल के समक्ष एक नई विधा – “तेवरी “ को स्थापित करने में जी-जान से जो मेहनत की है वह स्तुत्य है | तेवरी को ग़ज़ल से बिलकुल अलग रूप में अपनी पहचान स्थापित करता सद्यः प्रकाशित उनका तेवरी संग्रह “ घड़ा पाप का भर रहा “ तेवरी के एक नये रूप की पहचान कराता है | लम्बी तेवरी की शृंखला में आयी इस कृति में दोहा का प्रथम पंक्ति तथा तांटक छंद का द्वितीय पंक्ति में प्रयोग कर एक तेवर के रूप में सामने आया है जो कि ग़ज़ल के कथित शेर से सर्वथा भिन्न है (क्योकि ग़ज़ल के शे’र की दोनों पंक्तियों में एक ही छंद प्रयुक्त होता है)— उदहारणस्वरूप –
“जन जन की पीड़ा हरे , जो दे धवल प्रकाश
जो लाता सबको खुशहाली, उस चिन्तन की मौत न हो |
+ ज्ञानेंद्र साज़ , जर्जर कश्ती , वर्ष -३२, सितम्बर-अक्तू.-15
तेवरी संग्रह –“घड़ा पाप का भर रहा ” में विलक्षण प्रतिभा के धनी श्री रमेशराज ने “सर्प कुण्डली राज छंद ” लिखी है | यह तेवरी, तेवरी की आधी पंक्ति को अगली पंक्ति में डालकर एक दुरूह – बाने में रचित होने के कारण रमेशराज को साहित्य क्षेत्र विशेष पहचान दिलायेगी , ऐसा मेरा विश्वास है | इस तेवरी का आनन्द आप भी उठायें ….
अब दे रहे दिखाई सूखा के घाव जल में
सूखा के घाव जल में , जल के कटाव जल में |
जल के कटाव जल में , मछली तड़प रही हैं
मछली तड़प रही हैं , मरु का घिराव जल में |
मरु का घिराव जल में , जनता है जल सरीखी
जनता है जल सरीखी , थल का जमाव जल में |
थल का जमाव जल में , थल कर रहा सियासत
थल कर रहा सियासत , छल का रचाव जल में |
छल का रचाव जल में , जल नैन बीच सूखा
जल नैन बीच सूखा , दुःख का है भाव जल में |
+ ज्ञानेंद्र साज़ , जर्जर कश्ती , वर्ष -३२, सितम्बर-अक्तू.-15