रफ़्ता रफ़्ता (एक नई ग़ज़ल)
बनके हमारे दिल के मेहमान रफ़्ता रफ़्ता
वो कर रहे हैं मुझ पे अहसान रफ़्ता रफ़्ता
संग उसके ही हमारा अब आख़िरी सफ़र हो
सजने लगे हैं दिल में अरमान रफ़्ता रफ़्ता
सुबह सुबह गुज़रती है वो मेरी गली से
साथ लेके गुज़रती है मेरी जान रफ़्ता रफ़्ता
जबसे वो आ बसे हैं तब से ही उस गली में
बढ़ने लगीं फूलों की दुकान रफ़्ता रफ़्ता
मुझको ही नहीं उसने घायल किया है सबको
नज़रों से चला करके वो बाण रफ़्ता रफ़्ता
होठों के पास का तिल जब से दिखा है मुझको
दिल हो गया है मेरा बेईमान रफ़्ता रफ़्ता
~ विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar