रक्षा बंधन का उत्सव
‘अरे ये क्या ? राखी का लिफाफा अभी तक यही रक्खा है।’ पत्नी ने पूंछा। मैंने जवाब दिया – ‘हां वो मै ले जाना भूल गया था, ऐसा करो मेरे बैग मे डाल दो,आज कोरियर कर दूंगा। चिन्ता मत करो समय से पहले पहुंच जाएगा, ये लोग दो दिन मे पहुंचा देते है।’ हर साल रक्षा बंधन के एक महीने पहले से ही वो राखी भेजने की तैयारी शुरू करती। कहती – ‘राखी खरीदने तो जाओगे नही, मै बेटियों से मंगवा लूंगी बस तुम भेज देना।’ और जब तक भेज न देता हर दिन टोकती।
भाई बहन के पवित्र प्रेम का पर्व रक्षा बंधन पौराणिक भी है और ऐतिहासिक भी, जो हजारों वर्षों से चला आ रहा है। इसका महत्व तो इतना कि कृष्ण ने बहन द्रौपदी की लाज बचाई। रानी कर्णवती ने हुमायूं को और एलेक्जेंडर की पत्नी ने राजा पुरू को राखी भेज कर युद्ध का समापन करवाया। आज भी भाई, कलाई पर रक्षा सूत्र बंधवा कर बहनों को उनकी रक्षा करने का वचन देते है ऐसा समझा जाता है।
अच्छी तरह याद है जब हम छोटे थे तो हमारे अभिभावक पर्व पर राखी बंधवाने के पहले ही हमे पैसे देते और कहते राखी बांधने पर बहन को दे देना। ये सिलसिला मेरे बच्चों तक चला और अब उनके बच्चों मे चल रहा है। ये हमारी परम्पराये है जो हमारे खून मे रची बसी है, ये अंतहीन सिलसिला पीढी दर पीढी चलता चला आ रहा है और चलता रहेगा। यही तो है हमारी सनातनी संस्कृति जिसके लिए हम दुनियां में जाने जाते हैं।
पर्व का दिन रक्षा बंधन त्योहार है उत्सव भी मनाया जा रहा है। सभी बहनें और भाई अपने परिवारों के संग घर मे मौजूद हैं हर तरफ चहल पहल है। घर का कोना कोना हंसी किलकारी से गूंज रहा है, सबके चेहरे पर खुशी और उल्लास साफ साफ दिखाई दे रहा है। छोटी बेटी शिल्पी बोली – ‘दीदी, पिन्टू भैय्या कहां है बुलाओ, दोपहर न जाने कब बीत गई, सुबह से भूखे प्यासे बैठे है राखी बांधे, भाई का मुंह मीठा करायें नेग ले लें फिर कुछ खाया पिया जाये।’ मुझे ऐसा लगा वो मन ही मन सोंच रही थी मम्मी के हाथ के बने पकवान स्वादिष्ट सेहत के लिए फायदेमंद हमारा इंतजार कर रहे हैं। दीदी बोली – हां कह दिया है बस वो आ ही रहा है।
सभी लोग लिविंग रूम मे इकट्ठे हुए राखी बांधने का कार्यक्रम शुरू हुआ, सबसे पहले मेरे बच्चों की बुआ जी मेरी बहन द्वारा भेजी गई राखी बेटी ने बांधी, फिर बेटे को उसकी बहनों ने, छोटे बच्चों का सिलसिला चला। खुशी के माहौल मे हर्ष के साथ मिठाई खाने खिलाने के बाद भोजन के लिए सभी ने अपना-अपना स्थान ग्रहण किया। बाहर से आर्डर देकर मँगाई गयी पैक्ड थालिया परस दी गयी। मेरा अंदाजा सही निकला, बेटी शिल्पी की तंद्रा टूटी, आंखे नम हो गयी सुबकने लगी, उसके पास पहुंच के सांत्वना दी, -‘बेटी उत्सव के उमंग मे हम सब ये भूल गये कि अभी कुछ दिन पहले ही तुम्हारी मम्मी नहीं रही, उनके हाथों का खाना अब नही मिलेगा। मुझे भी राखी न भेजने पर कोई नहीं टोकेगा।
स्वरचित मौलिक
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अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297