रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
शाम को ऑफिस से लौटते पर कमल के घर में कदम रखते ही दीप्ति उबल पड़ी, मैंने फोन पर आपको बता ही दिया था कि मैं रक्षाबंधन पर आपकी लाड़ली बहन रमा को उपहारस्वरूप देने के लिए साड़ी लेकर आ गई हूँ, फिर क्या जरूरत थी कि आपको इतनी महंगी साड़ी लाने की ? क्या घर में पैसों का पेड़ लगा हुआ है ?’’
कमल ने अपने मुँह पर उंगली रखकर धीरे से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘अरी भागवान चुपकर । ये साड़ी रमा के लिए मैंने नहीं रमा ने तुम्हारे लिए खरीदे हैं ?’’
‘‘रमा ने मेरे लिए ? क्यों भला ?’’ दीप्ति ने आश्चर्य से पूछा ।
‘‘वो इसलिए कि तुम्हें तो पता है कि रमा की कोई ननद याने हमारे बहनोई जी के कोई बहन नहीं हैं, और तुम्हारे कोई भाई नहीं । इसलिए बहनोई जी ने तुमसे राखी बँधवाने का फैसला लिया है । उन्होंने तुम्हें कई बार फोन लगाया, पर तुम्हारा फोन स्वीच ऑफ बता रहा है ।’’
‘‘हाँ, बैटरी डाउन होने से वह दोपहर में बंद हो गया था । मैं चार्जिंग में लगाकर मार्केट चली गई थी ।’’ दीप्ति बोली ।
‘‘तभी उन्होंने मुझसे पूछा, तो मैं कैसे मना करता । वे मेरे ऑफिस आए थे । मैं उन दोनों के साथ ही घर आया हूँ । वे लोग बाहर गार्डन में पिताजी से बातें कर रहे हैं । तुम जल्दी से उनके लिए कुछ चाय-पानी का बंदोबस्त करो ।’’ कमल बोला ।
जीवन में पहली बार राखी बाँधने के बारे में सोचकर ही उसकी आँखें नम हो गईं ।
वह दुगुने उत्साह से बाहर रमा और उसके पति के स्वागत के लिए गार्डन की ओर भागी ।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर छत्तीसगढ़