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1 Aug 2023 · 1 min read

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

शर्मा जी का परिवार बहुत ही सुखी था। उनकी रमा और उमा नाम की दो प्यारी-सी बेटियाँ थीं। दोनों अपने मम्मी-पापा की आँखों के तारे। मम्मी-पापा उन्हें बेटियाँ नहीं बेटे ही मानते थे और उनकी परवरिश बेटों की तरह ही कर रहे थे।
बाकी सब तो ठीक था, परंतु रक्षाबंधन के दिन दोनों बहनें बहुत दुखी हो जातीं। अपनी सहेलियों को अपने-अपने भाइयों को राखी बाँधते देख इनकी भी इच्छा होती कि काश ! उनका भी कोई भाई होता।
इस बार रक्षाबंधन पर दोनों बहनों ने आपस में सलाह मशविरा किया और मम्मी-पापा से बोले, “पापा आप हमें अपना बेटा मानते हैं न ?”
पापा ने कहा, “ऑफकोर्स बेटा, हम आपको अपना बेटा ही मानते हैं।”
रमा बोली, “तो ठीक है पापा, इस बार हम भी रक्षाबंधन मनाएँगे। इस बार मैं उमा को राखी बाँधूँगी और उमा मुझे।”
मारे खुशी के मम्मी-पापा ने दोनों बच्चियों को बाँहों में भींच लिया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

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