Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Nov 2023 · 2 min read

रक्त संबंध

लघुकथा

रक्त सम्बंध

रोज सुबह “गाड़ी वाला आया, घर से कचरा निकाल” गाने की आवाज़ सुनकर सबकी नींद खुलती है। प्रायः दीप्ति जी ही डस्टबिन को बाएँ हाथ से पकड़ कर लातीं और नाक-भौं सिकोड़ते हुए नगरपालिका के कर्मचारियों के हवाले करतीं। कभी-कभी उनका बारह वर्षीय बेटा रमेश भी डस्टबिन लाता। तब मालती की नजर उस पर बराबर लगी रहती। डस्टबिन के कचरे को नगरपालिका की गाड़ी में खाली करने के बाद हैंडवॉश से हाथ साफ करना उनकी दिनचर्या में शामिल था। यदि कभी उनका बेटा रमेश किसी सफाई कर्मचारी को छू लेता, तो दीप्ति उसे तुरन्त नहाने के लिए कहतीं।
एक दिन अचानक दोपहर में दीप्ति को सूचना मिली, “आपका बेटा जिस आटो में सवार होकर मार्केट गया था, उसका एक्सीडेंट हो गया है। रमेश को गहरी चोट लगी है और वह सिटी हॉस्पिटल में एडमिट है।”
रोते-रोते, गिरते-पड़ते दीप्ति किसी तरह हॉस्पिटल पहुँची। तब तक रमेश को होश आ गया था। उसके सिर और पैर में पट्टी बंधी थी। उसे खून चढ़ाया जा रहा था। दीप्ति अपने बेटे से लिपट कर रोने लगी।
डॉक्टर की आवाज़ सुनकर वह शांत हुई, “थैंक गॉड, अब सब कुछ नॉर्मल है। ईश्वर का शुक्र है कि आप इन्हें तुरंत यहाँ ले आए और एक अपरिचित बच्चे को रक्तदान भी किए। अब यह खतरे से बाहर है। आप ये जूस पी लीजिएगा। आधा घंटा रूकेंगे, नॉर्मल होने के बाद आप अपने घर जा सकते हैं।” डॉक्टर रमेश के बैड के बगल में लेटे शख्स, जिससे ब्लड लेकर रमेश को चढ़ाया जा रहा था, की कलाई से सूई निकालते हुए बोले।
दीप्ति ने हाथ जोड़कर उस व्यक्ति और डॉक्टर का शुक्रिया अदा किया।
दीप्ति को वह शख्स कुछ जाना-पहचाना-सा लगा। उनके जाने के बाद रमेश बोला, “मम्मी, घर जाकर आप अच्छे-से नहा धो लीजिएगा। और हाँ, अब मेरा क्या होगा ? आज दुर्घटना के बाद मुझे यहाँ लाने और खून देकर मेरी जान बचाने वाले अंकल कोई और नहीं बल्कि हर सुबह हमारे मुहल्ले का कचरा इकट्ठा करने वाले नगरपालिका के सफाईकर्मी ही थे। अब तो मेरे शरीर में उनका खून भी बह रहा है।”
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

210 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
उससे मिलने को कहा देकर के वास्ता
उससे मिलने को कहा देकर के वास्ता
कवि दीपक बवेजा
धीरे-धीरे क्यों बढ़ जाती हैं अपनों से दूरी
धीरे-धीरे क्यों बढ़ जाती हैं अपनों से दूरी
पूर्वार्थ
दोहा
दोहा
Dinesh Kumar Gangwar
सत्य बोलना,
सत्य बोलना,
Buddha Prakash
भूलने दें
भूलने दें
Dr.sima
New Love
New Love
Vedha Singh
👌कही/अनकही👌
👌कही/अनकही👌
*प्रणय*
"खूबसूरत आंखें आत्माओं के अंधेरों को रोक देती हैं"
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
दामन भी
दामन भी
Dr fauzia Naseem shad
प्रेम
प्रेम
Pratibha Pandey
नीयत में पैमान मिलेगा।
नीयत में पैमान मिलेगा।
पंकज परिंदा
खूबसूरती
खूबसूरती
Mangilal 713
मैं नहीं जानती
मैं नहीं जानती
भगवती पारीक 'मनु'
मैं भी डरती हूॅं
मैं भी डरती हूॅं
Mamta Singh Devaa
4507.*पूर्णिका*
4507.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
अगर मैं अपनी बात कहूँ
अगर मैं अपनी बात कहूँ
ruby kumari
बारिश की बूंद
बारिश की बूंद
Neeraj Agarwal
कहमुकरी
कहमुकरी
डॉ.सीमा अग्रवाल
मुहब्बत की दुकान
मुहब्बत की दुकान
Shekhar Chandra Mitra
काहे का अभिमान
काहे का अभिमान
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
*गीत*
*गीत*
Poonam gupta
पन्नें
पन्नें
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
चरित्र राम है
चरित्र राम है
Sanjay ' शून्य'
व्यक्ति की सबसे बड़ी भक्ति और शक्ति यही होनी चाहिए कि वह खुद
व्यक्ति की सबसे बड़ी भक्ति और शक्ति यही होनी चाहिए कि वह खुद
Rj Anand Prajapati
*शाही शादी पर लगे, सोचो कैसे रोक (कुंडलिया)*
*शाही शादी पर लगे, सोचो कैसे रोक (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Cá độ qua 188bet.com, 64 bị cáo hầu tòa
Cá độ qua 188bet.com, 64 bị cáo hầu tòa
Cá độ qua 188bet.com
छल फरेब
छल फरेब
surenderpal vaidya
प्यार समंदर
प्यार समंदर
Ramswaroop Dinkar
"मेरी कहानी"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...