रक्त के परिसंचरण में ॐ ॐ ओंकार होना चाहिए।
शिव ने पिया विष का प्याला।
वही है संहारक वही रखवाला।
शिव सीखाते है खुद में डूबे रहना।
लगा के ध्यान कैलाश पर्वत पर।
आत्मा में गोते लगाते रहना।
स्वदर्शन, आत्मदर्शन से खुद को जानना।
आग को स्वयं के तन से पार होने दो।
पानी को पूरा लहरा लेने दो।
किसी की औकात नही तुम्हे डिगा दें।
जो तुम मन को अपने नियंत्रण में रखे हो।
ले सकता तुम्हे कोई भी नही अपने नियंत्रण में।
डर शरीर में नही मन के है क्रंदन में।
शिव है वही जो मन को रखे है बंधन में।
कामदेव को स्वाहा किया खोल अपने त्रिलोचन से।
शिव कभी छिपता नही ।
हर किसी को दिखता भी नही।
खोल कर रख लिया हो।
जिसने अपने आत्मा के नेत्र।
शिव उससे दूर कही रहता भी नही।
रक्त के परिसंचरण में ॐ ॐ ओंकार होना चाहिए।
उनकी हर मर्जी स्वीकार होनी चाहिए।
बुद्धि प्रखर होनी चाहिए।
तपस्या देव करें या दानव।
दोनो को उसको लाभ देना चाहिए।
सही पक्ष में जो रहे खड़ा।
उसी को आशुतोष शिव कहना चाहिए।
RJ Anand Prajapati