“रक्त उज्जवला स्त्री एवं उसके हार”
#किंतुपरंतु अभी नहीं शाम को लौटते वक्त ले आऊंगा और कुछ व्यंगात्मक बातों के साथ जैसे ही घर से निकला और गाड़ी स्टार्ट करने वाला था!पड़ोस के कुछ ही मकान छोड़ जोरदार आवाज सुनाई दी जैसे ही मुख्य द्वार पर पहुंचा अचेत अवस्था में गिरे हुए रमेश भैया उम्र लगभग 35 वर्ष मैं भी देखकर सन्न रह गया जैसे ही हाथ लगाया रमेश भैया पूरे हिल चुके थे! बदन ठंडा पड़ गया था! रोती बिलखती उनके ढाई वर्ष की बालिका और 33 वर्ष की पत्नी अचेत अवस्था में चिल्ला चिल्ला कर अपने पति को उठाते हुए लेकिन रमेश भैया अब नहीं रहे औपचारिकता के लिए सभी लोग मिलकर हे!ऑटो में नए बने पास ही के अस्पताल ले गए दौड़ते हुए कर्मचारी स्ट्रक्चर लाया जैसे ही भैया को लेटया गया कर्मचारी समझ चुका था! रमेश भैया नहीं है!फिर भी हड़बड़ाहट में आईसीयू में एंट्री हुई डॉक्टरों ने कोशिश करी लेकिन होना जाना कुछ नहीं था!क्योंकि अब अस्पताल पहुंचे हैं तो डॉक्टर ने अस्पतालों की मशीन का और डॉक्टर की चेकअप की फीस का चार्ज लगभग 3000 ले लिया शादी में गए एक साथी ने बिल का भुगतान कर रसीद अपने जेब में रख ली जैसे तैसे एंबुलेंस से रमेश भैया को घर लाए रिश्तेदारों में खबर पहुंचा दी गई दोपहर 2:00 बजे का समय रमेश भैया की अंतिम यात्रा का रखा गया रोती बिलखती भाभी और ढाई साल की गुड़िया दोनों का सहारा अब चला गया था! जैसे ही कुछ दिन बीते अब घर चलाने की समस्या उत्पन्न होने लगी और अब गुड़िया 3 वर्ष में प्रवेश कर चुकी थी! वैसे ही स्कूल का खर्च अन्य खर्चों का चलना मुश्किल हो चुका था!काम की आवश्यकता बहुत थी!अब उतनी ही जरूरी जितना गुड़िया का स्कूल में एडमिशन और दो वक्त की रोटी साथ ही अन्य खर्च अब बहुत मुश्किल हो चुका था! अब जवान महिला ऊपर से विधवा और एक बच्ची का बोझ बाहर नए काम करना कुछ उचित ना लगा रमेश भैया अपने घर से दूर एक फूलों की दुकान पर कार्य किया करते थे! कभी-कभी काम की अधिकता होने पर वह थोड़ा वक्त काम घर ले आया करते थे और दोनों पति-पत्नी मिल काम पूरा कर लिया करते थे! क्योंकि उस काम का अनुभव रमेश भैया की पत्नी को अच्छे से था! तो उन्हें यह काम उचित लगा उन्होंने पास ही के मंदिर पर एक हार की दुकान लगा ली क्योंकि मंदिर पास में होने की वजह से हार की दुकान ठीक-ठाक चलने लगी गुड़िया स्कूल भी जाने लगी सब ठीक ठाक चलने लगा लेकिन समस्या उन दिनों की जिस समय रमेश भैया की पत्नी मंदिर में चढ़ने वाले फूलों को नहीं छु पाती और उसे उन दिनों में दुकान को बंद रखना पड़ता समस्या बढ़ने लगी क्योंकि अब व्यवसाय ठीक-ठाक चलने लगा था!रोज के ग्राहक जो नित्य मंदिर जाया करते थे! अब वह सिर्फ उन्हीं के पास से हार फूल माला खरीदा करते थे! जो कि धर्म शास्त्रों के अनुसार रक्त उज्जवला स्त्री का मंदिर में जाना एवं उसके हाथ से बनी किसी भी चीज का प्रवेश मंदिर में मनाही रहता है बड़ी विकट उत्पन्न होने लगी गुड़िया की छोटे होने की वजह से गुड़िया वह काम नहीं कर सकती थी महीने में 22 दिन ही दुकान चला पाना और ग्राहकी का बिगड़ना बड़ा ही घर चलाने वाली व्यवस्था मैं व्यवधान उत्पन्न करने वाला हो चुका था!अब ग्राहक भी समझने लगे थे कि दुकान बंद रहने का क्या कारण है!क्योंकि धर्म के प्रति समर्पित और धर्म शास्त्रों को बिना पढ़े मानने वाले धर्मआन्ध्र व्यक्ति इन सब बातों को ज्यादा मानता है!!रक्त उज्जवला होना शायद ही कोई स्त्री शायद ही इस प्राकृतिक उपहार से वंचित रही हो लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वह घृणित अवस्था में उस समय आ जाती है! अब चुकी समस्या बड़ी हो चुकी थी इसी दौरान मुझे कुछ फूल मालाओं की जरूरत पड़ी और मैं दुकान पर गया मुझे दुकान बंद दिखी तो वास्तविकता जानने के लिए मैं घर पहुंचा मैंने कुछ सो फूल माला का ऑर्डर दिया लेकिन वह फूल माला मुझे नहीं मिल पाएगी ऐसा उन्होंने मुझे जवाब दिया कारण पूछने की कोशिश करने पर उन्होंने प्रतीकात्मक भाषा में जवाब दिया कि मैं अभी फूलों को नहीं छू सकती इतना तो समझ में आ गया था कि कारण क्या है!लेकिन मुझे वह फूल माला ऐसे महापुरुष की जयंती के लिए चाहिए थी जिसेने पूरे जीवन में इन सभी पाखंडवाद और इन्हीं ढकोसलो की पोल खोलने में लगा दी, उन्होंने काफी मना किया लेकिन मेरे आग्रह पर उन्होंने फूल माला मुझे तैयार कर दी और वह फूल माला मैंने महापुरुष की जयंती पर मेरे साथियों द्वारा उन्हें अर्पित की गई जिसका असर रमेश भैया की पत्नी पर भी हुआ कुछ समय बाद उन्होंने पूरे महीने दुकान चलाना शुरु कर दिया कुछ उनसे फूल माला लेने लगे और कुछ नहीं शायद उन्हें यह बात समझ में आ गई थी की फूलों को लगाने वाला स्त्री हो या पुरुष और किन लोगों ने उसे उगाया तोड़ा और, खेतों से शहर तक पहुंचाने में कितने वह कैसे लोगों की मदद ली गई उन दिनों में भी दुकान का व्यवसाय अच्छा चलने लगा और उन्होंने मुझे इस परिदृश्य से पर्दा उठाने पर कई बार धन्यवाद दिया लेकिन मैंने वह धन्यवाद स्वीकार ना करते हुए उस महापुरुष की विचारधारा से अवगत कराया जिसकी जयंती पर मैंने उनसे वह फूल मालाएं ली थी! अब रमेश भैया की पत्नी समझ गई थी और अब फूल माला की दुकान पर अब उसी महापुरुष का चित्र था! जब मैं कुछ दिनों बाद दुकान पर गया मन को बड़ा प्रसन्न हो गया!
गुड़िया एक तरफ बैठ कर एकाग्र मन से पढ़ाई कर रही थी जैसे ही उसने मुझे देखा वहीं खड़े होकर बड़ी प्रसन्न मुद्रा में कहा भैया
?जय भीम?
“रक्त उज्जवला स्त्री एवं उसके हार”
लेख
शिक्षक
एवं
विचारक
उमेश बैरवा