रक्तदान
रक्तदान
‘तू चलेगी, तो आ जा, आज देख ही आते हैं कि रक्तदान कैसे किया जाता है ।’ पिंकी अपनी सहपाठिनी से कह रही थी । ‘हम भी चलेंगे’ उसकी 2-3 और सहपाठिनों ने कहा । दिल्ली विश्वविद्यालय मैट्रो स्टेशन के बाहर युवाओं को रक्तदान के लिए प्रेरित करते कुछ बुजुर्ग और कुछ युवा स्वयंसेवक जो एक स्वयंसेवी संस्था से जुड़े थे अपने अपने अंदाज़ में प्रचार कर रहे थे । छात्र छात्राओं के रेले के रेले आते जा रहे थे । उनमें से अधिकतर दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी कैम्पस स्थित अलग अलग काॅलेजों में रविवार को लगने वाली विशेष कक्षाओं में पढ़ने के बाद इधर उधर चहलकदमी कर रहे थे । ज़िन्दगी के कई रंगों का आनन्द लेते ये युवा रक्तदान के प्रति अनभिज्ञ तो नहीं थे पर सभी तैयार भी नहीं हो रहे थे । मन में कई शंकाएं थीं । कुछ तो अभी इतने स्वतंत्र नहीं थे कि बिना माँ-बाप की आज्ञा के ऐसा कदम उठा सकें । रक्तदान कैम्प में कुछ अकेले जाने को तैयार थे और कुछ अकेले जाने से घबरा रहे थे । अकेले जाने से घबराने वालों को अकेले जाने वाले साथ ले जा रहे थे । स्वयंसेवकों द्वारा वाहनों का प्रबन्ध किया गया था । रक्तदान के बैनरों से सजे ये वाहन बारी बारी से चक्कर लगा रहे थे ।
वहाँ से मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर रूपनगर में लाली बाई जगदीश रानी चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) द्वारा आयोजित रक्तदान कैम्प में चहल पहल थी । स्वयंसेवकों के साथ विद्यार्थियों का एक समूह जिन्होंने ‘ब्लड कनैक्ट’ के नाम से सँयुक्त प्रयास आरंभ किया हुआ है वे भी पूरी तरह से मुस्तैद थे । इंडियन रैड क्राॅस के अधिकारी, डाॅक्टर व अन्य सहयोगी भी पहुँच चुके थे । चारों ओर रक्तदान संबंधी पोस्टर व बैनर लगे हुए थे जो रक्तदान की महिमा का गान कर रहे थे और लोगों को प्रेरणा दे रहे थे । साफ सुथरे कमरों में 8 बैड्स की व्यवस्था थी । द्वार पर रजिस्ट्रेशन केन्द्र बना हुआ था जहाँ पर रक्तदाताओं का पंजीकरण होना था । रक्तदाताओं को रक्तदान करने के तुरन्त बाद कुछ जलपान आवश्यक होता था उसकी सम्पूर्ण व्यवस्था की जा चुकी थी । अलग अलग टेबलों पर स्वयंसेवक मुस्तैद हो चुके थे । कुछ देर पहले जो आपाधापी मची हुई थी वह एक व्यवस्था का रूप ले चुकी थी । इंडियन रैड क्राॅस सोसायटी वाले अपनी टेबलों पर मुस्तैद थे । रक्तदान से पूर्व सभी आवश्यक जाँच के लिए सहयोगी अपने उपकरणों के साथ मौजूद थे । इसी ऊहापोह के बीच द्वार पर पहुँचे वाहन में रक्तदाताओं का पहला जत्था उतरा जिसमें पाँच छात्र-छात्राएँ थे । रक्तदाताओं को रक्तदान के बाद उनके गंतव्य स्थान तक पहुँचाने की व्यवस्था भी की गई थी ।
जोश से भरे जत्थे के रक्तदाता पंजीकरण टेबल पर पहुँचे । बहुत सारी जानकारी माँगी गई थी । दो विद्यार्थी तो दी गई जानकारी के आधार पर ही अयोग्य घोषित कर दिये गये क्योंकि उनका वजन ही कम था । वे 45 किलो से भी कम भार के थे । बाकी के तीन विद्यार्थी पंजीकरण कराकर रक्त जाँच टेबल पर पहुँचे । रक्त जाँच में दो विद्यार्थी अयोग्य घोषित हो गये क्योंकि उनका हीमोग्लोबिन का स्तर आवश्यक से भी कम था यानि 10-11 के आसपास था । मज़बूत कद काठी वाले रिजेक्ट किए हुए विद्यार्थियों को तो यकीन ही नहीं हो रहा था । पाँच में से एक ही विद्यार्थी रक्तदान के योग्य पाया गया । उसे रक्तदान टेबल पर ले जाया गया और कुछ ही मिनटों बाद पर वह रक्तदान करके बाहर आ गया । उसके चेहरे पर खुशी के चिह्न थे । उसे आवश्यक जलपान कराया गया, रक्तदाता प्रमाण पत्र दिया गया व डोनर्स कार्ड भी मिला जो अगले एक वर्ष तक किसी भी स्थिति में काम आ सकता था । ब्लड कनैक्ट वालों ने उसका फोटो भी लिया तथा उसे कई उपहार दिये गये । जब तक वह रक्तदान कर रहा था उसके बाकी साथियों को स्वास्थ्य के बारे में बहुत सी जानकारी दी गई । वे सभी हैरान थे और भौंचक्के थे । अभी तक स्वयं को पूर्ण स्वस्थ समझने वाले रक्तदान के लिए अयोग्य घोषित हो गये यह उनके ऊपर किसी तुषारापात से कम नहीं था । पर आज उनकी आँखें खुल गई थीं । वे कुछ गम्भीर तो अवश्य हुए पर वे आयोजकों का धन्यवाद कर रहे थे जिनके कारण उन्हें अपने वास्तविक स्वास्थ्य के बारे में पता चला । उन्होंने प्रण किया कि स्वास्थ्य सुधारने में वे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और अगले वर्ष सुधरे स्वास्थ्य के साथ रक्तदान करने आयेंगे । जिन जिन की रक्तजाँच हुई उनमें से बहुतेरों को अपना ब्लड गु्रप भी नहीं मालूम था जो उस दिन पता चला ।
यह एक प्रामाणिक तथ्य है । अक्सर स्वयं को पूर्ण स्वस्थ समझने वाले भी रक्तदान केन्द्रों में जाकर जब अयोग्य घोषित कर दिये जाते हैं जो उनका विचलित होना स्वाभाविक ही है । छात्राओं के साथ यह विशेष समस्या थी । फैशन के चलते वे अपने आप को इतना पतला कर लेती हैं कि उनमें रक्तहीनता के लक्षण दिखने लगते हैं । पतले दिखने के चक्कर में वे पोषक तत्वों को अनदेखा कर देती हैं । उनका वजन भी कम और हीमोग्लोबीन भी कम । यौवन की चहल पहल में वे स्वयं को स्वस्थ समझती हैं पर यहाँ आकर उनका सोचना गलत साबित हुआ ।
इस दौरान रक्तदाताओं का आना जाना शुरू हो गया था । उत्साह की कोई कमी नहीं थी । योग्य और अयोग्य घोषित होने का सिलसिला निरन्तर जारी था । कुछ योग्य इसलिए अयोग्य घोषित कर दिये गये कि उन्होंने पिछले 24 घंटों में अल्कोहल का सेवन किया था और उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि ऐसी स्थिति में रक्तदान के योग्य होते हुए भी वे अयोग्य ठहरा दिये जायेंगे । इंडियन रैड क्राॅस के अधिकारियों ने बताया कि जिन जिन की रक्तजाँच हुई है उन्हें रिपोर्ट घर पर भेज दी जायेगी जिससे कि वे अपने स्वास्थ्य में सुधार संबंधी कदम उठा सकें । विद्यार्थी व अन्य रक्तदाता इस बात से बहुत प्रसन्न थे कि रक्तदान शिविर में आना सिर्फ रक्तदान करना ही नहीं अपितु स्वास्थ्य की जाँच भी होना है । बहुतों को तो यह भी मालूम नहीं था कि रक्तदान करने के बाद शरीर में स्वयं ही रक्त का निर्माण हो जाता है । पर रक्त कभी भी मानवीय प्रयोगशाला में नहीं बन सका । रक्तदान समाप्ति पर 75 यूनिट रक्त एकत्र हो चुका था जो इंडियन रैड क्राॅस सोसायटी के मुताबिक ज़बर्दस्त आँकड़ा था । देश की सीमाओं के प्रहरियों, थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों, डेंगू से जूझते लोगों, दुर्घटनाओं में रक्त गँवा चुके लोगों की जीवन रक्षा के लिये, अनेक बीमारियों से जूझ रहे लोगों को आॅपरेशन के दौरान रक्त की आवश्यकता होती है । इन्टरनेट पर बहुत जानकारी और आँकड़े हैं जिन्हें देखने के बाद कोई भी रक्तदान करने की इच्छा और प्रण कर सकता है । बहुत सी संस्थाएं इस पुनीत कार्य में संलग्न है । सभी पाठकों से अनुरोध है कि यथासंभव रक्तदान करें, इसमें कोई नुकसान नहीं होता, अपितु रक्त शोधन की प्रक्रिया भी चलती रहती है । । ‘रक्तदान जीवनदान’ ‘रक्तदान महादान’ ।