लेखक कि चाहत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
हिंदी साहित्य की नई विधा : सजल
कोई चाहे तो पता पाए, मेरे दिल का भी
23/196. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जीवित रहने से भी बड़ा कार्य है मरने के बाद भी अपने कर्मो से
मैं ना जाने क्या कर रहा...!
**** मानव जन धरती पर खेल खिलौना ****
రామయ్య రామయ్య
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
"मेरा निस्वार्थ निश्चछल प्रेम"
एक दिन हम भी चुप्पियों को ओढ़कर चले जाएँगे,
एक मुस्कान के साथ फूल ले आते हो तुम,
मास्टर जी का चमत्कारी डंडा🙏