रंग रसीया
सुनयना अपने जीवन के पचास बंसत देख चुकी है और एक कामयाब महिला रही है । घर हो या कार्य क्षेत्र, बहुत जिम्मेदारी से सब कर्त्तव्यों का वहन करने के बाद वह थोड़ी राहत महसूस कर रही थी। सुनयना के शहर मे ही उसकी बचपन की सहेली नीना भी रहती थी और वह काफी मिलनसार व सामाजिक गतिविधियों मे हिस्सा लेती रहती थी। लेकिन सुनयना अन्तरमुखी स्वभाव की थी और अपने मे मस्त रहती थी। दोनों सहेलियां तीस साल से लगातार जीवन के हर किस्से को सांझा करती रही थी। एक दिन नीना ने बताया कि स्कूल के सब साथी फेसबुक व वटसप् से जुड़ गए हैं और उसने सुनयना से भी मुनहार की सबसे जुड़ने के लिए। सुनयना लेकिन बिल्कुल भी जुड़ने में रुचि नही रखती थी। नीना के जाने के बाद सब काम निपटा कर वह अतीत में खो जाती है…।
जिन्दगी की सूई बीस साल पहले की घटना पर आकर अटक जाती है जब वह दिनेश के सम्पर्क में दुबारा आयी थी। दिनेश… उसका पहला प्यार। काफी दिनों तक तो वे दूरभाष से ही एक दूसरे के साथ इश्क के उस सागऱ में डूब जाना चाहते थे जिसके किनारे पर वे खड़े थे । सुनयना के पति मनप्रीत विदेश में दो साल के लिए कम्पनी की तरफ से गए थे। पति की दूरी व वैवाहिक सम्बंधो में उनके ठंडे रवैये ने जैसे अधूरे इश्क को परवान चढ़ा दिया…।
बातें मुलाकातों में बदलती गई। सुनयना को लगा जैसे जिन्दगी पंख लगाकर उड़ रही हो। सुनयना घूमने की बहुत शौकीन थी लेकिन पति बिल्कुल विपरीत। उनका लक्ष्य केवल पैसा कमाना था और यही कारण था कि वो लोग कभी हनीमून पर भी नहीं गए थे। सुनयना सभी इच्छाओं का गला घोंट कर, जिम्मेदारीयों को ही नियति मानकर, जीवन की धारा को मोड़ चुकी थी। लेकिन दिनेश का उसकी जिन्दगी में दुबारा शामिल होना ऐसा था जैसे तपती मरूभूमि को सागऱ मिल गया हो। दोनों महीने में बाहर घूमने की कोई न कोई योजना बना ही लेते थे। सुनयना पुरुष का सानिध्य पाकर गुलाब की तरह खिलती चली गई क्योंकि पति उसे कभी तृप्त नही कर पाये थे और वह शर्म की वज़ह से किसी से बात सांझा भी नही कर सकी थी। सुनयना ने दिनेश से अपनी जिंदगी की हर बात बेझिझक सांझा की थी । दिनेश काफी सवेंदनशील इसांन था और सुनयना की हर समस्या का समाधान उसके पास होता था।
लेकिन एक खत़ा हुई थी दोनों से कि परिवार के सामने झुक गए थे दोनों और जीवन साथी नहीं बन पाए थे। फिर भी दिल से कभी एक दूसरे को रुख्सत नहीं किया था। दिनेश के पास सुनयना के पत्र आते रहते थे । दिनेश ने अपनी पत्नी से सुनयना के साथ मित्रता की बातें सांझा की थी। दिनेश की पत्नी सुशीला भी सुनयना से घुलमिल गई थी। दिनेश व सुनयना इस रिश्ते को पारावारिक मित्रता मे बदलना चाहते थे। सुनयना ने भी जितना आवश्यक था उतनी बातें पति मनप्रीत को बता दी थी। धीरे- धीरे दोनों परिवार एक दूसरे से काफी हिलमिल गए थे क्योंकि मनप्रीत और सुशीला काफी हंसमुख स्वभाव के थे। विदेश से जब भी आते थे तो दिनेश के परिवार से जरूर मिलकर आते थे।…
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन भावनाओं के वशीभूत हो एक पत्र में सुनयना ने कुछ बातें ऐसी लिख दी जो उसने कभी किसी से भी सांझा नहीं कि थी और दिनेश पत्र पढ़कर बहुत बैचेन हो गए। उसने सोचा सुशीला काफी मैच्योर हो गई है और सुनयना से भी हिलमिल गई है तो उसने सुनयना के संघर्ष की कहानी से पूर्ण वह पत्र उसे दे दिया। एक पंक्ति में सुनयना ने लिख दिया था कि ” दिनेश तुम मेरा पहला और आखिरी प्यार रहोगे।” बस फिर क्या था। घर में भूचाल आ गया और आजाद़ ख्याल प्रतीत होने वाली सुशीला फन फैला कर डसने को तैयार हो गई। दिनेश और सुनयना ने परिस्थिति को भांपते हुए अपने रास्ते फिर जुद़ा कर लिए…।
आज़ नीना उसे फिर उस समूह से जुड़ने के लिए कह रही थी
जिसमें उसका ‘इश्क’ दिनेश भी है। सुनयना कसमस में रही कि क्या करे। इच्छा तो थी कि दिनेश से बातचीत हो जाए ।फिर थोड़ा साहस करके फेसबुक व वटसप् के समूह से जुड़ गई। सभी साथीयों ने सुनयना का तहे दिल से स्वागत किया। वे उत्सुक भी थे उसकी जीवन यात्रा जानने के लिए ।क्योंकि उनमें से बहुत सारे लड़के सुनयना को स्कूल के दौरान चाहते थे। सुनयना की सादगी व उसके आदर्शों से वे सभी प्रभावित रहते थे। लेकिन उन्हें भी पता था कि सुनयना केवल दिनेश को चाहती है। दिनेश भी कोई न कोई संदेश लिख देता था जो प्रतिक रूप में होते थे।लेकिन कुछ दिन बाद सुनयना ने समूह को छोड़ दिया क्योंकि उसके घाव हरे होने लगे थे। अब वह किसी भी कीमत पर अपने मन की शांति भंग नहीं होने देना चाहती थी…
वहाँ उसने देखा कि दिनेश अपनी कक्षा की हर लड़की से जुड़ा हुआ है और सभी को घर भी निमंत्रण देता रहता है। सुशीला सभी के साथ तस्वीरों में दिखाई भी देती है लेकिन एक बात सुशीला के संज्ञान में नहीं आती है कि दिनेश अब अपने ‘इश्क’ को इन सभी में खोज़ता रहता है। एक सुनयना की मुलाकात पर तो प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन क्या सुशीला कभी इस तथ्य को समझ पाएगी ? मुश्किल है। यह बात तो सुनयना ही जानती है कि दिनेश अपना प्रतिशोध ले रहा था। दोस्ती का आवरण ओढ़कर अब वह कक्षा की हर लड़की(जो अब महिला हो चुकी हैं) वटसप् से मस्ती भरी बातें करता रहता है। जब कभी समूह की पार्टी होती है तो हर किसी के साथ डांस करता है। इन लड़कियों(महिलाओं) को भी अच्छा लगता है क्योंकि उन्हें दिनेश का सानिध्य मिल रहा है। वे भी अपनी दबी हुई हसरतें पूरी कर रहीं है क्योंकि स्कूल के समय उन्हें बहुत ईर्ष्या होती थी कि दिनेश केवल सुनयना का दिवाना था। सुनयना को ये सब बातें अपनी क्लास मेट से पता लगती रहती हैं। सुनयना के एक दो पुरूष मित्र हैं जो ये सब सुनयना को बताते रहते हैं। नीना की तस्वीरें भी दिनेश के साथ देखी तब तो सुनयना को गहरी चोट पहुंची थी क्योंकि सुनयना इतने सालों तक अपनी हर कहानी नीना से सांझा करती रही थी और वायदा भी लिया था कि नीना एक दिन अवश्य ही दिनेश और सुनयना की मुलाकात करवायेगी। लेकिन आज़ उसे समझ आया था कि नीना भी सुनयना से प्रतिशोध ले रही थी उसकी भावनाओं को आहत करके। दोनों घनिष्ठ सहेलियों के अब रास्ते अलग हो चुके हैं। सुनयना को एक ही बात खली कि नीना को स्वीकार तो करना चाहिए था कि वह दिनेश को चाहती रही है।
सुनयना सोचती रहती है कि लोग प्यार तो करतें हैं लेकिन उसे स्वीकार नहीं करते कि समाज क्या कहेगा। फिर उसी प्यार को दूसरा आवरण ओढ़ा कर अपनी हसरतें पूरी करते हैं। वह सोचती है कि मनुष्य को स्पष्ट जीवन जीना चाहिए। कोई गलती होती है तो उसकी जिम्मेदारी भी लेना चाहिए । किसी को प्यार करना गुनाह नहीं है। ये एक सुंदर अनुभूति है। प्यार बलिदान भी मांगता है और उसके लिए दोनों प्रेमियों को तैयार रहना चाहिए। जीवन साथ जीना ही प्यार का मकसद कभी नहीं होता। ये एक सुंदर अहसास है जो जीवनपर्यंत चलता रहता है और मन को हसीन वादियों में सैर कराता है।
पति पत्नी एक दूसरे की प्रोपर्टी नहीं हैं। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी जऱनी है इसलिए रिश्तों में घुटन नही बल्कि समझ की हवा बहनी चाहिए। …सोचते सोचते सुनयना नींद के आगोश में चली गई।
@तोषी–सन्तोष मलिक चाहार–@ 16/09/2018.