रंगोत्सव
रंगोत्सव पर मन के भाव
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प्रेम के ये रंग , भाव प्रेमातुर हृदय के ..
बसे तार तार जो , बिना किसी लय के ……
मन की पिचकारी ,अरे मन ही पै मारी …
अब प्रेम मधु मटकी ,उड़ेल दी है सारी …..
रंग दिया तन मन बिना किसी भय के ….
प्रेम के ये रंग ,भाव प्रेमातुर हृदय के ..
चाहत की कुमकुम , प्रतीक्षित ये भाल ….
सपने मेँ आ आकर, हो मलती गुलाल …
प्रेम वीथि प्रिये कसी. देखो आज कैसे …….
प्रेम के ये रँग भाव , प्रेमातुर हृदय के …
बसे तार तार जो बिना किसी भय के ….
क्रमशः
@अरुण त्रिवेदी अनुपम
अंतस से