” रंगों में सब छिपे तपाक ” !!
फागुन के रंग पड़े छपाक ,
और मृदंग पर पड़ी है थाप !!
अधरों पर अलबेले गीत ,
भाव रँगीले सजी है प्रीत !
मन के पार उतरना चाहे ,
रंग रंगीला मन का मीत !
धरा सजी है गगन झूमता ,
मनवा लेता रहे अलाप !!
कहीं पर्व है कहीं व्यथा ,
कोई चुप , कोई कहे कथा !
अंग अंग पर रंग झूमते ,
दुख को भूलें , कहे प्रथा !
मुखड़ों की रंगत बदली है ,
रंगों में सब छिपे तपाक !!
अंगना हुई , ठिठोली है ,
बरजोरी करे टोली है !
सभी रंग में डूबे डूबे ,
लगती होली नवेली है !
धरती अंबर एक हो गये ,
बढ़ता सा लगता है ताप !!
गीतों में थिरके हैं बोल ,
यौवन नाचे बजता ढोल !
छाया आज नशा ऐसा है ,
मीठे लगते कड़वे बोल !
धरती अंबर डोल रहे हैं ,
इक दूजे की लेते नाप !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )