यौवन के मद
सवैया छंद
शब्द -यौवन के मद
1-
प्रीत अधीर बने कर चंचल, जी परिरंभण को ललचाती ।
दूर कभी पुनि पास बुलाकर,नैन मिला फिर नैन चुराती।।
काग कपोत सखी दृग ओझल, यौवन के मद में उलझाती।
भोर भये हिरणी दृग चंचल,ले अधरों पर प्रीत दिखाती।
***
2–
वृक्ष लता लिपटी दिखती मन , को परिरंभण को ललचाती !
नैन नचा मुड़के निरखे पुनि, चंद्रमुखी चित को तरसाती।
यौवन के मद झूल रही वह, दामिनि कौंध सुधा बरसाती ।
घूंघट ओट निहार रही प्रिय,श्याम घटा उर आग लगाती।