“योमे-जश्ने-आज़ादी” 2024
कभी ज़मीं तो कभी आसमान कहते हैं,
तिरी ही ज़र, तिरी दौलत पे नाज़ करते हैं।
हो मुबारक सभी को योमे-जश्ने-आज़ादी,
सभी शहीद फ़क़त दिल मेँ मिरे रहते हैं।
ख़ुशनसीबी का अपनी हो भी अब बयाँ कब तक,
हवा-ओ-आबे-मुक़द्दस मेँ हम तो पलते हैं।
ज़मीं है बर्गो-बार, हर तरफ़ है शादाबी,
यहाँ की ख़ाक मेँ ही खेल के हम बढ़ते हैं।
क़र्ज़ किस तरह चुकाऊंगा, देश का अपने,
पड़े जो बात, यहीं ख़ाक मेँ भी मिलते हैं।
पेट दुखता है, यक़ीनन बहुत से मुल्कों का,
यहाँ की शान से, वो दिल ही दिल मेँ जलते हैं।
दिल है दुखता जो जरायम-ए-नाज़नीँँ पे मिरा,
अश्क़े-बेदाग़े-मुसलसल जो मिरे बहते हैं।
चढ़े ये देश, तरक्की के पायदान, सदा,
हम इसी आरज़ू मेँ, रँजो-ग़म भी सहते हैं।
हमें है फ़ख़्र, तिरंगे पे इस क़दर “आशा”,
इसी की आबरू पे, जाँ निसार करते हैं..!
योमे-जश्ने-आज़ादी # स्वतंत्रता दिवस का पर्व, celebrations of independence day
हवा-ओ-आबे-मुक़द्दस # पवित्र जलवायु, holy environment
जरायम-ए-नाज़नीँँ # महिलाओं पर अत्याचार, crimes on women.
बर्गो-बार # फल-पत्तों युक्त, laden with fruits and leaves
शादाबी # हरियाली, greenery
जरायम-ए-नाज़नीँँ # महिलाओं पर अत्याचार, crimes on women.
अश्क़े-बेदाग़े-मुसलसल # निष्कपट आँसुओं का निरन्तर (बहना), (shedding) tears continuously
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