योद्धा
जंगलों की गहराइयों में, एक योद्धा अकेला,
जीवन की लड़ाई में, चाहता था सुकून का मेला।
उसकी मांग न थी जंग से, न था उसका इरादा हार,
सिर्फ घर को वापस देने की, थी वही उसकी पुकार।
सीमा के पार किए संघर्ष, धूप में, बर्फ में बिताए रात,
पर जीतने का संकल्प था, उसके वीरों की बात।
गर्व से भरा उसका हृदय, जब लौटा वह अपने देश,
युद्ध में हार नहीं थी, विजय का था वह वर्णनेका अभिषेक।
यह है एक योद्धा की कहानी, जो बेघर होने को भी,
प्रेम से गले लगा लिया, अपने देश की मिट्टी।