योग प्राणायाम
घनाक्षरी
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हर्षित बनायें मन चित्त कीजिए एकाग्र,
स्वस्थ हम बनें रहें योग प्राणायाम से।
भोर में जगा रही है रश्मि सूर्य की प्रथम,
त्याग दीजिए शयन ईश को प्रणाम से।
जिन्दगी हो योगमय सत्यनिष्ठ धर्मनिष्ठ,
वक्त यूं करें न नष्ट व्यर्थ के आराम से।
भोजन भजन स्नान हो सभी यथा समय,
और दूर हम रहें व्यर्थ ताम झाम से।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २१/०६/२०२४