योग छंद विधान और विधाएँ
योग छंद ~ 20 मात्रिक – 12 – 8 , बारह मात्रा पर यति चौकल से ( चारों प्रकार ) व चरणांत 122 यगण से
यदि चरणांत दो दीर्घ के चौकल से हो रहा है तब अठकल के पहले चौकल की अंतिम मात्रा लघु हो , आशय यह है कि पदांत 122 यगण ही रहना चाहिए
योग छंद
सबसे पहले जानो , आज इशारा |
रहे सदा शुभ आगे , कर्म हमारा ||
दीन दुखी की सेवा , कभी न छोड़े |
उठे शत्रु की अँगुली , शीघ्र मरोड़े ||
कहलाती है मेरी , भारत माता |
जिनके चरणों में अब, शीष झुकाता ||
हर जन्मों में उनके , रहें पुजारी |
ईश्वर. इक्क्षा पूरण , करें हमारी ||
भारत माँ के बेटे , सदा अनूठे |
जमीदोज भी करते , जिस पर रूठे ||
विश्व पटल ने भी , है यह माना |
स्वाभिमान में आगे , भारत जाना ||
सुभाष सिंघई
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मुक्तक ~योग छंद
योग छंद 12 – 8 , यति चौकल ,
पदांत 122 यगण
मुक्तक , ” पानी” पर
ग्रीष्म ताप को जब -जब, चढ़े जवानी |
बादल बनता है तब, आकर दानी |
धरती पर बन जाती , नई कथा-सी~
लिखे प्रेम परिभाषा , बहकर पानी |
पानी चखकर बनती , पवन सुहानी |
पत्ते लहराकर कर , हँसें जुबानी |
शीतलता भी आए , झुककर बोले ~
मैं भी स्वागत करता , लखकर पानी |
अवनि बनी अम्बर की , प्रेम दिवानी |
कहती हमको अब तो , रीति निभानी |
तृप्त तभी हो पाऊँ , नेह रहेगा ~
बरसेगा जब अनुपम , अद्भुत पानी |
सुभाष सिंघई
पाकर सुंदर जीवन , कलह मचायें |
कष्ट जरा सा पाकर , सब अकुलायें |
मद में आकर बोले , कहे हमारा ~
जब भी हारे प्रभु का, दोष बतायें |
आज आदमी दिखता , बड़ा सयाना |
बात घुमाने हर पल , रखे खजाना |
मजा सभी का लेता , बन हितकारी ~
नुस्खा नया नवेला , कहे पुराना |
नहीं छूटती आदत , कभी पुरानी |
जिसमें चुगली पहले , नम्बर मानी |
हजम तभी है खाना , जब कर लेता ~
इसकी देखी सबने , अजब कहानी |
सुभाष सिंघई
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गीत ~ आधार योग छंद
आई गाँव हमारे , चलकर गोरी | मुखड़ा
हँसती मुस्काती -सी , चन्द्र चकोरी | टेक
लटें लगें नागिन सी , जो घुँघराले | अंतरा
नैन बिखेरे जादू , हैं मतवाले ||
सुंदरता की देवी , लगी तिजोरी |पूरक
हँसती मुस्काती-सी, चन्द्र चकोरी ||टेक
करधौनी पर कहते , बोल हमारे | अंतरा
लता, पुष्प से लिपटी , करे इशारे ||
कोमल किसलय नादाँ ,है यह छोरी | पूरक
हँसती मुस्काती – सी , चन्द्र चकोरी ||टेक.
चमक रही है नथनी , आभ बिखेरे | मुखड़ा
घायल होते भँवरे , जिस. तट हेरे ||
नेह ‘ सुभाषा ‘ चाहत, बाँधत डोरी |,
हँसती मुस्काती – सी, चन्द्र चकोरी ||टेक.
सुभाष सिंघई
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अपदांत गीतिका ( आधार – योग छंद )
12 – 8 (यति चौकल , चरणांत 122 )
लोग चले है बनने , शूर सयाने
चर्म शेर की ओढ़ें, लगे बनाने ||
कागा गाता लेकर , हाथ मजीरा ,
ताल मिलाती कोयल , सुनकर गाने |
देख रहे सब मंजर , बोल न फूटें ,
साँप बिलों से आए , अब लहराने |
चली हवा है कैसी , तनकर झूठे ,
लगे सत्य को सम्मुख ,अब धमकाने |
कौन यहाँ पर आया , लेकर झंडा ,
दिखा- दिखाकर सबको , लगा खिजाने |
सुभाष सिंघई
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योग छंद , गातिका ,
समांत अत , पदांत माता
नेता कैसा रखते , चाहत नाता |
पीड़ा सहती जाती , भारत माता |
कसम तिरंगा खाते , देश. बेंचते ,
देख रही है अपनी ,दुर्गत माता |
अवसर पर जनता की , खाल खेंचते ,
देख रही चोरों का , बहुमत माता |
चोर- चोर मौसोरे , बनकर भाई ,
उनको देख रही सौ , प्रतिशत माता |
अन्न उगाते जो भी , घुटकर मरते ,
लिखकर अब किसको , दे खत माता |
सुभाष सिंघई
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आलेख ~ #सुभाष_सिंघई , एम. ए. हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र , निवासी जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०