योग और ध्रुवीकरण
आजकल रोज हररोज, गली मुहल्लों से गुजरते हुए, एक बात सुनने की मिलती है, रामकला और कमला
एक सत्संग मण्डली की बागडोर को संभाले हुए,
छोटे छोटे पर्व-उत्सव की तलाश में,
आयोजक बनती आ रही थी,
मैं अक्सर उनसे पूछते रहता,
असल जिंदगी में वो सब आ जाता है,
आखिर वहां सत्संग में क्या करती हो,
ना भाई, ये सांसारिक बातें हैं,
इनसे उस इहलोक का क्या लेना देना,
मैंने पलटकर जवाब दिया कमला काकी जीवन तो वही अच्छा जो एक जैसा रहे, परिस्थिति कैसी भी हो.
पानी का स्वभाव है, प्यास बुझाना.
आग का काम जलाना,
इसे विज्ञान नियंत्रित करके भाँप के ईंजन से रेलगाड़ी चलती है,
आग के मामले में भी कोयले की प्रैश,
कोयले के ईंधन से चलने वाले रेल इंजन आदि इत्यादि.
ना भाई तनै ना बेरो.
म्हारा बाबा सतयुग के प्रथम परमात्मा है, जो इस कलियुग के बाद, पुण्यात्माओं का सृजन करते है.
मैं सबकुछ समझ चूका था.
काकी रामकला और कमला के मनोबल किसी न किसी तरह क्षीण पडे हुए हैं,
इनके पास आज एक साधना जिसका नाम राजयोग है, और प्रोडक्ट त्राटक ध्यान है.
खैर, उनके जीवन में मुझे हठयोग के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था,
किसी के घर के खाने की तो बात छोडिय़े, पानी तक ग्रहण नहीं करती.
घर की रसोई में सम्मलित नहीं होती,
क्योंकि बिना नमक,लहसुन, प्याज जैसे पड्-रस चीजें जो शरीर को स्वस्थ और पुष्ट रखती है,
उनके लिए कामुक बता कर दूर रखे जाता है.
संबंध संबोधन संबोधि तो अपने स्वभाव विचार विवेक पर निर्भर करता है,
पुरुष-प्रधान समाज में तरह तरह की कहानियां प्रचलित है, उनकी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए, ऐसे ऐसे कामी/क्रोधी/लालची को भगवान ईश्वर बना कर उनकी पूजा/उपासना/आराधना स्त्रियां करती है.
जो वे अपने पति में कदापि नहीं देखना चाहती,
खैर रामकला और कमला ने अपना एक समाज पैदा कर लिया,
जिससे ज्यादातर घर बरबाद होने लगे थे,
बंदर भी केला और दो हजार के नोट में से केला को चुन लेगा,
उसी तरह बच्चे हैं, उन्हें चीजें थोपने से नहीं, आचरण में तब आती है, जब जरूरत बन जाती हैं,
बच्चे को पकौड़े चाहिए वो भी प्याज वाले, प्याज आप खाते नहीं हो,
उसे छौंक लगे चरचरे लजीज़ चावल चाहिए,
आप खाते हैं,मीठे चावल.
अब घर में शांति की उम्मीद छोड दो,
घर के सिकुड़न भरे माहौल से बाहर बच्चे जायेंगे,
वे हर नियम को तोडेगा.
क्योंकि जीभ स्वाद की भूखी है.
उसे रोके गया, जानने न दिया,
आँखें दृश्य को लालायित है,
उसे सौंदर्य बौद्ध का परिचय नहीं है.
स्त्रीत्व की ओर आकृष्ट होंगे.
प्रेम,प्यार को नहीं कामुक्ता को प्राप्त होंगे,
कमला, बिमला, निर्मला, सरला, केला, रामकला, चंद्रकला तो इहलोक, सतलोक,परलोक के सुख देख रही थी,
उन्हें क्या मालूम था, वे क्षीण मनोबल की शिकार है, जिसे वे घर तक ले आई,
आज भारतवर्ष में बहुत से संस्थान चल रहे है, जो लोगों को मुक्त करने के बजाय बंधन में बाँधकर कठपुतली
इख्तियार कर रहे है,
श्रेष्ठता के पायदान चलाये हुए है.
आप किसी पंत,परंम्परा के पोषण जो पटरी बिछाकर, हर व्यक्ति के व्यक्तित्व को जाने बिन
उसे कैसे जागृत कर सकते हो,
एकमात्र आप और संसार सच है.
एक के परिवार चलाने वा बच्चे पैदा करने के लिए शिक्षित होना आवश्यक नहीं है,
तो मंत्र,व्रत,उपवास जागरण में कैसे मदद करेंगे,
व्यवाहरिक होना जरूरी है.
व्यवहार का आधार समझ है.
और वो नहीं है तो,
आपका कोई भी प्रयोग करेगा.
शिक्षा :- कथनी करनी में सामंजस्य जरूरी है, बाद में इंसानी निर्मित आदर्श वा व्यवस्था.
Renu Bala M.A(B.Ed)Hindi