योगी छंद विधान और विधाएँ
योगी छंद ( मापनी युक्त मात्रिक छंद ) दो दो चरण तुकांत या चारों चरण तुकांत
योगी छंद ~ 20 मात्रिक – 10 – 10 पर यति और चरणांत |
छंद में सभी शब्द. समकल. होते है
त्रिकल + त्रिकल + द्विकल =आठ का समकल भी निषेध है
योगी छंद ~
अपने भारत को , पहले पहचाना |
बलिदानी माटी का , पौरुष. भी जाना ||
रहते है हम सब , बनकर के नायक |
माँ की सेवा हित , बनते है लायक ||
ऋषि मुनि भारत के , अनुपम दिखलाते |
ग्रंथो की वाणी , जीवन में अपनाते ||
चलते है जिस पथ , हम सब पहचाने |
गुरु ईश्वर होते , बस इतना जाने ||
शारद माता मैं , अब करता वंदन |
अर्पित भावों का , स्वीकारो चंदन ||
तेरा मैं सेवक , या कह लो नंदन |
शरणागत रखकर , काटो भव फंदन ||
करता रहता हूँ , तेरा आराधन |
लेखन रत रहता , हरदम मेरा मन ||
तेरी आशीषें , माता मैं पाऊँ |
जब तक जिंदा हूँ , तेरा गुण गाऊँ ||
स्वीकारो माता , भावों की माला |
चरणों में रखकर , देना उजियाला ||
तेरी पूजा से , मिल जाती राहें |
पूरी होती है , सेवक की चाहें ||
सच्चाई रखना , गुरुवर जी कहते |
रामा – कृष्णा जी , हर घट में रहते ||
दुखियों की सेवा , हम पूजा माने |
नर में नारायण , देखे पहचाने ||
हम सब सज्जन की, पीड़ा को हरते |
आएं घर में तब , अभिनंदन करते ||
अपना घर कहते , तुम अपना जानो |
मिलते परिजन सब , कहते पहचानो ||
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योगी छंद, 10- 10 , सभी शब्द समकल
मदिरा पीने से , मानव क्या पाते |?
धन- दौलत घर की ,खोकर ही आते |
चलती राहों पर , ठोकर भी खाते |
अपने भी रखते , दूरी से नाते ||
हाला का प्याला , जहरीला मानो |
पीना ही इसको, अब घातक जानो ||
इज्जत भी मिट्टी , करके देती है |
प्राणों पर चंगुल , यह कर लेती है ||
उजड़े घर देखे , जो मदिरा पीते |
बीवी बच्चे भी , संकट से जीते ||
सुध खोकर जब वह ,घर में आते है |
उजड़ा-उजड़ा -सा, मुख हम पाते है ||
मदिरा करती है , तन को भी जर्जर |
मानव को निज पर, करती है निर्भर ||
देखा है जो नर , चंगुल में आता |
सुख की छाया से , दूरी ही पाता ||
सुभाष सिंघई
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मुक्तक ( योगी छंद )
जिसकी करनी भी , दें काली रातें |
कपटी कागा- सा , करता है घातें |
उल्टा सीधा भी , जो सबसे बोले ~
उसको भी जानो , कोरी हैं बातें |
उनका दर पूरा , पावन कहलाता |
जिनके घर ऋषिवर ,पग रज दे जाता |
सुषमा विखरे तब , आँगन भी महके ~
जिनका मन अंदर , संतोषी ध्याता |
जिसको भी गुरुवर, मन से कहते है |
समझो शिक्षा में , शुभ कण रहते है |
सम्मानित होते , परचम फहराते ~
उन्नति गंगा में , हर पल बहते है
सुभाष सिंघई
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अपदांत गीतिका ( आधार योगी छंद )
जो भी पीड़ा को , अंदर पीते है |
हर मुश्किल में वह , मानव जीते है ||
विपदाएं आती, कपड़ो सी फटकर ,
हँसकर वह बैठे , उनको सीते है |
जो समझे उनको , यह मानव सीधा ,
अवसर पर देखा , भिड़ने चीते है |
हर युग में देखा , उनके है झंड़े ,
मापा करने वह , लम्बे फीते है |
अभिमानी जिनसे , डरते रहते है ,
कपटी भी उनके , आगे रीते है |
सुभाष सिंघई
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गीत- योगी छंद 10–10
सभी सम शब्द होते हैं।
गुरु महिमा जानो , प्रभु जैसे पद हैं | {मुखड़ा )
जीवन में गुरुवर , अपनी सरहद हैं ||(टेक)
गुरुवर देते हैं , आशीषें जिसको |
यश मिल जाता है , जग में भी उसको ||
धारा से बहते , गुरुवर भी नद हैं |
जीवन में गुरुवर , अपनी सरहद हैं ||टेक
मंगल होता है , गुरुवर के कर से |
संरचना जीवन , पाते जीभर से ||
गुरु चरणों में सब , मिट जाते मद हैं |
जीवन में गुरुवर , अपनी सरहद हैं ||(टेक)
गुरुवर हरियाली , जीवन शोधक हैं |
गुरुवर हैं ज्ञानी , जीवन बोधक हैं ||
गुरुवर छाया में, बढ़ते ही कद हैं |
जीवन में गुरुवर , अपनी सरहद हैं ||(टेक)
गुरु चरणों में अब , हर दिन उत्सव है |
छाया पंछी – सा , हममें कलरव है ||
कविता हैं गुरुवर , जिसमें भी शद हैं | ( शहद )
जीवन में गुरुवर , अपनी सरहद हैं ||(टेक)
सुभाष सिंघई
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योगी छंद , गीत
“जन मन गण गाते , वह झंडा ताने ”
जन मन गण गाते , वह झंडा ताने |
जन का मन कैसा , वह यह मत जाने ||
बेईमानी का , दिखता है छाता |
पीड़ायें सहती , अब भारत माता ||
मतलब के सबके , बजते है गाने |
जन मन गण गाते , वह झंडा ताने ||
जनता को हरदम , ठगकर के रहते |
खुद को जनता से , अच्छा वह कहते ||
वाणी में फँसकर ,खुद आकर मिटती |
अवसर जब आता , जनता ही पिटती ||
सबने देखा है , वह स्वारथ ही माने |
जन गण मन गाते , वह झंडा ताने ||
देखी नेता की , चमड़ी है मोटी |
कथनी है सुंदर , पर करनी खोटी ||
जन का पैसा भी, सब लुटता जाता |
फिर भी यह भारत, जनगण मन गाता ||
उल्टा करते है , सब कुछ वह पाने |
जन मन गण गाते , वह झंडा ताने ||
सुभाष सिंघई जतारा
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आलेख /उदाहरण ~ #सुभाष_सिंघई , एम. ए. हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र , निवासी जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०