ये हवाएँ
जाने क्यों बदहवाश हैं ये हवाएँ
कैसा रूठा सा कयास हैं ये हवाएँ
समेटना चाहा कई बार हमने इन्हे
जैसे बिखरा अहसास हैं ये हवाएँ
जैसे बिखरा……………
खुशबू लिए हैं जैसे गुलशन की
भाषा हों जैसे तो ये तन-मन की
जाने ना क्यों उदास हैं ये हवाएँ
जैसे बिखरा……………
यादों का झरोखा हैं देखा हमने
ताजगी का झोंका है देखा हमने
दिल के आस-पास हैं ये हवाएँ
जैसे बिखरा……………
‘विनोद’ ‘विनोद’
हवाओं के साथ रहना सीख ले
हवाओं के साथ बहना सीख ले
खुशनुमा सा प्रयास हैं ये हवाएँ
जैसे बिखरा……………..
स्वरचित
( V9द चौहान )