ये लफ़्ज़ ये अल्फाज़,
ये लफ़्ज़ ये अल्फाज़,
जज्बातों की गर्म आवाज़,
यूँही नही बनती शायरी या ग़ज़ल
दर्द,इश्क़ की मिली जुली सौगात,
कभी भरते पन्ने तो कभी मौन से स्वर,
स्याही में लिपटे गहन आत्मीय संवाद💓✍🏻
ये लफ़्ज़ ये अल्फाज़,
जज्बातों की गर्म आवाज़,
यूँही नही बनती शायरी या ग़ज़ल
दर्द,इश्क़ की मिली जुली सौगात,
कभी भरते पन्ने तो कभी मौन से स्वर,
स्याही में लिपटे गहन आत्मीय संवाद💓✍🏻