*ये रिश्ते ,रिश्ते न रहे इम्तहान हो गए हैं*
ये रिश्ते ,रिश्ते न रहे इम्तहान हो गए हैं
बेवजह बेपरवाह सी नजर अंदाज जिंदगी,
न जाने इतना क्यों इम्तहान ले रही।
रिश्ते नाते सिमटते जा रहे दरकिनार कर रहे,
व्यस्त जीवन शैली जीने का अंदाज जी रही।
अटूट विश्वास लिए रिश्ते नाते सिमटते हुए ,
कम समय में औपचारिक रूप से निभा रही।
न कोई बात न पूछो मत किसी रिश्ते नाते को,
बस हम दो हमारे दो तक सीमित हो गए,
चिंता सता रही फिर भी कैसे एक दूसरे से दूर हो गए।
रिश्ते नाते की अहमियत समझे जाने नहीं क्यों,
इम्तहान की तरह से भूमिका निभा रहे हैं।
कभी मन विचलित हो उठा तो रिश्ते नाते को,
भुला कर पुनः जोड़ने की कोशिश न कर सके।
कभी खुशी कभी गमों की चादर ओढ़े हुए,
रिश्तों को भुला बैठे हुए हैं।
रिश्तों की बात रखकर भी न जाने कितने दिनों ,
दूरियों की दरकार बनाए रखे हुए हैं।
रिश्ते रिश्तेदारी से मान सम्मान मिला था,
वो सम्मान भी खोते जा रहे हैं।
न कोई रिश्तेदारी संस्कार मिल रहा,
बस धुन में मस्त अपने जिए जा रहे हैं।
गिले शिकवे शिकायतों का दौर गुजर रहा,
न कोई मिलना जुलना बस अपनी दुनिया में जी रहे हैं।
ये रिश्ते रिश्ते न रहे,इम्तहान हो गए हैं
शशिकला व्यास शिल्पी ✍️