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4 Aug 2023 · 1 min read

ये मद मस्तियाँ अब जाने भी दे जरा

दोस्तों,
एक मौलिक ग़ज़ल सादर प्रकाशनार्थ प्रेषित है।

ग़ज़ल
====

तूँ इक मस्त घटा है ये हमने जाना है
छू कर देख मन को मेरे, गर पाना है।
======================

ये मद मस्तियाँ अब जाने भी दे जरा,
क्यूँ मौजों को मौसम में तड़फाना है।
======================

तुमको ये ख़्याल नही है आखिर क्यूँ,
अच्छी नही ये नादानियाँ समझाना है।
=======================

आती-जाती रहती है,ये पागल हवाऐं,
रोको तो सही इन्हे भी कुछ बताना है।
======================

शबनम की बुंदे कुछ कहती है सुनिऐ,
पतझड़ में कलियों पे गुल खिलाना है।
======================

छोड़ो न रुठना मनाना जाने दो “जैदि”,
इस हयात में हमे तो हंसना हंसाना है।
=======================

शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”

Language: Hindi
138 Views
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