ये मद मस्तियाँ अब जाने भी दे जरा
दोस्तों,
एक मौलिक ग़ज़ल सादर प्रकाशनार्थ प्रेषित है।
ग़ज़ल
====
तूँ इक मस्त घटा है ये हमने जाना है
छू कर देख मन को मेरे, गर पाना है।
======================
ये मद मस्तियाँ अब जाने भी दे जरा,
क्यूँ मौजों को मौसम में तड़फाना है।
======================
तुमको ये ख़्याल नही है आखिर क्यूँ,
अच्छी नही ये नादानियाँ समझाना है।
=======================
आती-जाती रहती है,ये पागल हवाऐं,
रोको तो सही इन्हे भी कुछ बताना है।
======================
शबनम की बुंदे कुछ कहती है सुनिऐ,
पतझड़ में कलियों पे गुल खिलाना है।
======================
छोड़ो न रुठना मनाना जाने दो “जैदि”,
इस हयात में हमे तो हंसना हंसाना है।
=======================
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”