”ये बरसों का सफ़र है हमारे माँ बाप का”
तुम कभी भी सोच नहीं सकते
ये बरसों का सफ़र है….
उनके चेहरे की झुर्रियां, काँपते हाथ ,
दिन बा दिन कमजोर होती याददाश्त,
आँखों की घटती रौशनी
और झुकती हुई कमर,
उनको बुड्ढा होता देखकर
उनसे कतरा कर खुद पर इतराते हो
क्या तुमने कभी सोचा है
वे भी एक दौर में खूबसूरत
बलशाली हाथों वाले,
शतावधानी की ख्याति प्राप्त
दूरदृष्टि से परिपक्व
जवानी में सीना तान कर चलने वाले
अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी ख्वाहिशों को मार कर
तुम्हारे लिए इठलाते फिरते , फूले ना समाते
वे हमारे माँ बाप ही थे….
तुम कभी भी सोच नहीं सकते
ये बरसों का सफ़र है….
शिव प्रताप लोधी