ये नसीबा खेल करता जिंदगी मझधार है ।
गज़ल
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ये नसीबा खेल करता जिंदगी मझधार हैं ।
काश कोई थाम लेता बन के अब पतवार हैं ।।
दर्दे अपनों से मिले तो बैर रखना न कभी ।
जिंदगी का आसरा भी तो यही परिवार है ।।
बेटियों के जन्म लेते छा उदासी जो गई ।
मांगते सब नोट जेवर बाप भी लाचार हैं।।
कर्म करते जा रहे हैं फल की इच्छा भी नहीं ।।
सब से मिलता प्यार मुझको वो बड़ा पुरस्कार है ।
लाख मुश्किल सह के पाले अपने जो परिवार को ।
जिंदगी में घुट रहा वो वाकई फ़नकार है ।।
कर्म करते जा रहे हैं फल की इच्छा भी नहीं ।
सब से मिलता प्यार मुझको वो बड़ा पुरस्कार है।।
मुस्कुराकर दर्द बांटे “ज्योटी” की चाहत यही ।
अब भुला दो जो खड़ी यें बैर की दीवार है ।।
ज्योटी श्रीवास्तव (jyoti Arun Shrivastava)
अहसास ज्योटी 💞✍️