ये जीवन भी क्या हैं?
ये जीवन भी क्या हैं, कभी उत्थान तो कभी पतन,
कभी गूँज भरी किलकारियाँ, कभी मौत का निमंत्रण
कही लुटता हुआ धन हैं, कही घुटता हुआ मन,
कही हंसने पर पैसा हैं, कही रोना आजीवन !
– नीरज चौहान
ये जीवन भी क्या हैं, कभी उत्थान तो कभी पतन,
कभी गूँज भरी किलकारियाँ, कभी मौत का निमंत्रण
कही लुटता हुआ धन हैं, कही घुटता हुआ मन,
कही हंसने पर पैसा हैं, कही रोना आजीवन !
– नीरज चौहान