“ये गरीबों की दुनियां है”
ये गरीबों की दुनिया है…
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ये गरीबों की दुनिया है,
‘गरीबी’ ही है,,,
सबका अपना करीबी…..
ये धन-दौलत तो ऐसे निकलता…
जैसे, मुठ्ठी से रेत फिसलता….
‘गरीबी’ ही हैं, सबका अपना करीबी…..
‘गरीबी’ ही साथ निभाये,
हर-पल ,भले जीवन में लाए;
ये कई ‘हलचल’…२
ये ‘गरीबी’ ही है , सबका अपना करीबी…….
साथ छोड़ दे , सब मगर..
‘गरीबी’ चले सदा, अपनी डगर,,
ये गरीबों की दुनिया है,,
‘गरीबी’ ही है ,सबका अपना करीबी…….२…
‘गरीबी’ की होती, कैसी ‘सूरत’…
देखो, किसी ‘गरीब’ को….
या, उसकी ‘मूरत’..
ये ‘गरीबी’ ही है ,सबका अपना करीबी….
‘गरीब’ हो, तुम भले नहीं;
‘गरीब’ बनना सीख लो,अगर…२……
देखो, दुनियां, किसी ‘गरीब’ की नजर..
धन-दौलत से गरीबी, भला कहां भागे;
जब तक हरेक की किस्मत खुद ना जागे।
अमीरी का पता लगाए सब…
जूतों की पॉलिश देखकर,
जो हाथ अमीरी चमकाए …..
उसे गरीब कहे सब,
उसके हाथों की कालिख देखकर ।
ये गरीबों की ही ‘दुनियां” है…
‘गरीबी’ ही है , ..
सबका अपना करीबी….
‘गरीबी’ ही है,,,,,,,
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स्वरचित सह मौलिक
….. ✍️ पंकज”कर्ण”
………….कटिहार।।
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