ये कैसे अनजान !
ये कैसे अनजान !
बचे कहाँ अब शेष है,
रिश्ते थे जो खास !
बस मतलब के वास्ते,
डाल रहे सब घास !!
चूस रहे मजलूम को,
मिलकर पुलिस-वकील !
हाकिम भी सुनते नहीं,
सच की सही अपील !!
किसे सुनाएँ वेदना,
जोड़े किस से आस !
नहीं खून को खून का,
सौरभ जब अहसास !!
आकर बसे पड़ोस में,
ये कैसे अनजान !
दरवाजे सब बंद है,
और’ बैठक वीरान !!