ये कैसी मंजिल है इश्क की…..
ये कैसी मंजिल है इश्क की…..
एक ही इन्सान क्यु
इतना मजबूर हो जाता है….
और दूसरा ज़ख्म पे ज़ख्म
दिये जाता है
ये कैसी मंजिल है इश्क की…..
एक ही इन्सान क्यु
इतना मजबूर हो जाता है….
और दूसरा ज़ख्म पे ज़ख्म
दिये जाता है