ये कैसी बारिश?
लघुकथा
ये कैसी बारिश?
खिडकी के पास खड़ी होकर मन्वीता रीमझीम गीरती बारिश देख रही थी।पेड़ की लहेराती शाखो पर रंगीन फूल नृत्यमग्न झूल रहे थे।अभी पिछले महीने ही मन्वीता की आर्जव से मंगनी हुई थी।अपने जीवन की इस ख़ुशी की ये पहेली बारिश के छींटे मन्वीता को रोमांचित कर रहे थे ।वो आर्जव को फोन करने की सोच ही रही थी की मोबाईल की रींगटोन का प्यारा-सा गाना बज उठा।
और ….सामने से आर्जव ने पहेली बारिश में भीगने हुऐ वोक-वे की हरीभरी सैर करने की इच्छा जताई,तो मन्वीता ने तुरंत हाँ कर दी।
थोडी देर के बाद अपनी कार रखकर दोनो एक छाता लिऐ निकल पड़े।थोडी दूर जाते ही धीरे धीरे बारीश तेज हो गयी।दोनो प्यार की बातें करते हुए आगे बढ़ रहे थे की पैड के पास बैठे दो गरीब बच्चे पेपर पर रक्खा अपना दोपहर का खाना खाते हुए अपनी छोटी-छोटी हथेलियों से ढककर बारिश से बचाने की कोशीष कर रहे थे।आर्जव-मन्वीता दोनों के पैर रुक गये।दोनों ने ऐकदूसरे के सामने देखा और नजदीक जाकर छाता दे दिया।फिर खुली बारिश में दोनो बहेते आँसू के साथ चलते हुए कार की तरफ़ नीकल लिए ।
-मनिषा जोबन देसाई सूरत