ये और मैं
तू वो ग़ज़ल है मेरी
जिसमें शब्दों से ज़्यादा
तू नज़र आता है सबको
तेरे बिना अधूरी है, ये और मैं
मेरी आँखों को तेरी आदत है
तुझे देख मिलता इनको चैन है
जो न दिखे तू तो,
बेचैन सी लगती है, ये और मैं
ये जो नूर नज़र आता है
सबको और तुझको मेरे चेहरे पर
तुझ बिन बेनूर है, ये और मैं
ख्वाबों की दुनिया सजी है जो
हक़ीक़त होने के लिए
तुझ बिन बेविज़ूल है, ये और मैं
ये जो मोहब्बत के किस्से
हर महफ़िल की जान हैं
तेरे ज़िक्र बिना लगते बेजान हैं, ये और मैं
❤️ सखी