ये इश्क चीज़ भी कमबख्त क्या बनाई है
जहाँ वफ़ा है वहीं रहती बेवफाई है
ये इश्क चीज़ भी कमबख्त क्या बनाई है
हमीं को हमसे जुदा करता इस तरह से ये
लगे है जान भी अपनी हुई पराई है
ये कैसी इश्क ने दिल में अगन लगाई है
जलन भी दिल को लगे ज्यूँ मिली दवाई है
न होश रहता है अपना नहीं खबर कोई
खुदा ने रीत इबादत की ये बनाई है
तेरे ही मुस्कुराने से नज़ारे मुस्कुराते हैं
तेरे यूँ रूठ जाने से नज़ारे रूठ जाते हैं
बहारें आती जाती हैं तुझी से मेरे जीवन में
मिले जब जब हमारे सुर नज़ारे गीत गाते हैं
15-12-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद