ये इश्क़ है हमनफ़स!
तक़रीबन रोज़ हो जाता है मिलना उनका-मेरा,
रास्ता ख़ुद-ब-ख़ुद कट जाता है, उनका-मेरा।
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न वो चाहें, न हम चाहें, यों मिलना बेसाख़्ता,
जाने रोज़ क्यों पड़ता है, वास्ता उनका-मेरा।
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ता-ज़िंदगी लोग, यों कितने मिले-बिछड़े मगर,
न कभी पास न दूर हुआ, रिश्ता उनका-मेरा।
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जब भी ख़लल किया सुकून-ए-दिल में किसी ने,
जेहन में याद आया, पाक रिश्ता उनका-मेरा।
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ये इश्क़ है हमनफ़स ! क़ुर्बतो-लम्स ज़रूरी नहीं,
इश्क़ ही तो उम्रभर, फ़लसफ़ा है उनका-मेरा।