*ये आती और जाती सांसें*
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ये आती और जाती सांसें….किसकी हैं बता।
जो धड़क रहा है भीतर ,..क्या शै है वो भला।
तेरे मस्तक में तो रखे थे….सूर्य-चांद,.सितारे,
बता तेरे हिस्से का…..आसमां कहां खो गया।
तूने तो वचन दिया था,नेक राह पर चलने का,
अरे मुसाफिर तेरे उस,…वचन का क्या हुआ।
जिसे बाहर ढूंढ रहा है तू,वो तेरे भीतर बैठा है,
क्या तुझे मालूम है,…तू कब उससे जुदा हुआ।
हर प्राणी के अंदर ,एक बच्चा जीवित होता है,
क्या आज वो नन्हा सा बच्चा,लापता हो गया।
सबका मालिक एक है,हम सब उसकी संतान,
यहां अपना पराया कौन है,बता सके तो बता।
कर्मों का है खेल प्यारे,सब यहां पर है रह जाना,
सिकंदर भी गया यहां से,…..खाली हाथ फैला।
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सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब