ये आँखें तेरे आने की उम्मीदें जोड़ती रहीं
ये आँखें तेरे आने की उम्मीदें जोड़ती रहीं
पर सूनीं राहें, सारे भ्रम तोड़ती रहीं
तेरे बिन जीना दूभर सा था ।।
मैं तुझे रट रही थी, खुदके पन्ने मोड़ती रही।।
तुझमें सिकन आ ही जाती, जो मेरी आवाज़ तुझे छूती,
मैं खुद में ठहर गयी, तुझमें दौड़ती रही।।
अमर हो जाए मेरी मोहब्बत इस जहाँ में
तेरे नाम से मै हर पैगाम छोड़ती रही।।
तेरे इश्क में मीरा हो गई मैं तो,
मैं मर्यादाओं के सारे धागे तोड़ती रही।।
✍️कैलाश सिंह