यूं रहा तो शब्दकोश ही बदलकर रख देंगे ये..
सुशील कुमार ‘नवीन’
हमारे एक जानकार हैं। नाम है वागेश्वर। नाम के अनुरूप ही उनका अनुपम व्यक्तित्व है। धीर-गम्भीर, हर बात को बोलने से पहले तोलना कोई उनसे सीखे। न कोई दिखावा न कोई ढोंग। सीधे-सपाट। मुंहफट कहे तो भी चल सकता है। मोहल्ले में सब उनकी खूबियों से परिचित हैं। ऐसे में हर कोई उनसे बात करते समय सौ बार सोचता है। उम्र भले ही हमसे डेढ़ी हो पर हमारे साथ उनका सम्बन्ध मित्रवत ही है। खुद कहते हैं कि आप मेरी लाइन के बन्दे हैं। खैर आप उनके प्रशंसा पुराण को छोड़ें। आप तो बात सुनें और आनन्द लें।
आज सुबह पार्क में उनके साथ मुलाकात हो गई। रामा-श्यामी तो स्वभाविक ही थी। देखकर बोले-आओ, मित्र सुंदर-सुगन्धित, हरी-भरी शीतल-स्निग्ध छाया में कुछ क्षण विश्राम कर लें। कुछ अपनी सुनाएं, कुछ आपकी सुनें। उनका इस तरह वार्तालाप करना मेरे लिए भी नया अनुभव था। दो टूक बात कह समय की कीमत समझाने वाले इस व्यक्तित्व के पास आज वार्तालाप का समय जान मैं भी हैरान था। उनके निमंत्रण को स्वीकार कर हंसते हुए मैने कहा-क्या बात साहब। आज ये सूरज पश्चिम की तरफ से क्यों निकल रहा है।
बोले-कुछ खास नहीं। वैसे ही आज गप्प लड़ाने का मूड हो रहा था। सबके अपने दर्द होते हैं ऐसे में हर किसी से बात करना जोखिमभरा होता है। आप कलमकार है, सबके सुख-दुख पर लिखते हो। आपसे बात कर अच्छा लगता है। मैंने कहा-ये आपका बड़प्पन है। बोले-यार क्या जमाना आ गया है। बोलने की कोई सेंस ही नहीं है। थोड़ी देर पहले एक आदमी यहां से गुजर रहा था। छोटा सा एक बच्चा दूसरे से बोला-देख काटड़ा जाण लाग रहया। भले मानस उसके ढीलडोल को देख मोटा आदमी कह देते। पेटू, हाथी क्या नाम कम थे जो काटड़ा और नया नाम निकाल दिया। मैंने कहा- जी कोई बात नहीं, बच्चे हैं। हंसी-मजाक उनकी तो माफ होती है।
अब वो अपना ओरिजनल रूप धारण कर चुके थे। बोले-ठीक है ये बच्चे थे।माफ किए। पर ये बड़े जिनपर सबकी नजर रहती है वो ऐसी गलती करें तो क्या सीख मिलेगी आने वाली पीढ़ी को। नाम सदा पहचान देने के लिए होते हैं। पहचान खोने के लिए थोड़ी। लाल-बाल-पाल के बारे में पूछो सभी लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल को सब जान जाएंगे। नेता जी माने सुभाष चन्द्र बोस, गुरुदेव माने रविन्द्र नाथ टैगोर, शास्त्री जी से लाल बहादुर शास्त्री, महात्मा से महात्मा गांधी की पहचान सभी को है। स्वर कोकिला से लता मंगेश्कर, सुर सम्राट से मोहमद रफी, याहू से शम्मी कपूर, ड्रीम गर्ल से हेमा मालिनी, पाजी से धर्मेंद्र, बिग बी से अमिताभ बच्चन जाने जाते है। उड़नपरी से पीटी उषा, लिटिल मास्टर से सुनील गावस्कर, मास्टर ब्लास्टर से सचिन तेंदुलकर, हरियाणा हरिकेन से कपिल देव अलग से ही पहचाने जाते हैं। दादा, माही,जड्ड, गब्बर,युवी भी बुरे नाम नहीं है।
अब तो स्तर और भी नीचे चला गया है।पप्पू, फेंकू, खुजलीवाल नाम अपने आप में ब्रांड बन चुके हैं। बेबी-बाबू, स्वीटू-जानू, छोटा पैकेट-बड़ा पैकेट के तो क्या कहने। मैं हंसने लगा तो फिर बोल पड़े। बोले- अभी तो हरामखोर, नॉटी गर्ल, आईटम ही नाम आगे आये हैं। इनके जन्मदाता इनके अर्थ को ही नई परिभाषा का रूप दे रहे हैं। अभी तो देखना गोश्त चॉकलेट तो मच्छी लॉलीपॉप का शब्द रूप धारण कर लेगी। कुत्ता-कमीना मतलब बहुत प्यारा हो जाएगा। गधे जैसा मतलब समझदार, बन्दर चंचल व्यक्तित्व हो जाएगा। बिल्ली मतलब ज्यादा सयानी,हाथी पर्यावरण प्रेमी को कहा जायेगा। सियार यारों का यार तो लोमड़ रणनीतिज्ञ कहलाएगा। खास बात निक्कमा काम का नहीं से बदलकर बेकार के काम न करने वाला कहलवायेगा। और यदि यूँ ही इनके शब्दों के अर्थ बदलने का प्रयोग जारी रहा तो पूरा शब्दकोश बदल जायेगा। वो लगातार बोले जा रहे थे। मुझमें भी उन्हें बीच में रोकने की हिम्मत नहीं थी। इसी दौरान उनके मोबाइल की घण्टी बज गई। फोन के दूसरी तरफ से उनकी अर्धांगनी का मधुर गूंजा-कहां मर गए। ये चाय ठंडी हो जाएगी तब आओगे क्या। फिर इसे ही सुबड़-सुबड़ कर के पीना। मुझे और भी काम हैं। कोई तुम्हें झेलने वाला मिल गया होगा।वागेश्वर जी बोले-थोड़ा सांस तो लो। बीपी हाई हो जाएगा। पूरे दिन फिर सर पे कफ़न बांधी रहना। बस अभी आया। यहां पार्क में ही बैठा हूँ। कोई अंतरिक्ष में सैर करने नहीं गया था।यह कहकर फोन काट दिया। हंसकर बोले-भाई,हाइकमान का मैसेज आ गया है, तुरंत रिपोर्ट करनी होगी। अन्यथा वारंट जारी हो जाएंगे। ये कहकर वो निकल गए। मैं भी उनके कथन को मन ही मन स्वीकारते हुए घर की राह चल पड़ा। घर पहुंचा तो स्वागत में ही नया शब्द सुनने को मिला। सुई लगाके आये या लगवाके। मैंने कहा-मतलब। जवाब मिला- मतलब ज्ञान बांट के आये हो या कोई आपसे बड़ा ज्ञानी मिल गया था, जो इतनी देर लगा दी। जवाब सुन मैं भी हंस पड़ा। शब्दकोश तो पक्का ही बदलकर रहेगा। इसे कोई नहीं बचा सकता। पत्नी मेरे शब्द बाण से हतप्रभ रह गई। मैंने उसे सारी बात बताई तो वो भी मुस्करा दी।
(नोट: लेख मात्र मनोरंजन के लिए है। इसे किसी के साथ व्यक्तिगत रूप में न जोड़ें।)
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।
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