*”यूँ ही कुछ भी नही बदलता”*
“यूँ ही कुछ भी”
अचानक यूँ ही कुछ भी हासिल नही होता,
जीवन लक्ष्य बनाते हुए ,
जी जान से कड़ी मेहनत से ,
कुछ खोकर कुछ पाकर ,
तप साधना में लीन होकर ,
सब्र की सीमाओं में बंधकर ही ,
दर्दनाक पलों को बर्दाश्त कर ,
घोर निराशा में घिरकर ,
कड़वे अनुभव छल कपट झेल कर ,
तीखे व्यंग बाणों को सुनकर ही ,
कड़वे घूँट पीकर सहनशीलता रख,
जीवन जीने का अंदाज ढूंढ ही लेते।
अचानक यूँ ही कुछ भी नहीं होता जीवन में…!!
पल भर में ख्वाहिशें पूरी ना होती ,
कभी किसी जरूरतमंद की मदद कर ,
हमदर्द बन दुःख दर्द बाँटकर ,
चेहरे पे खुशी की झलक पाकर ,
नेक काम का नतीजा देख कर ,
खुशियों से मन भर जाता।
अनजान व्यक्ति की मदद कर ,
गमों को बांट हिम्मत दे जाता।
गलत नजरियों से बचकर ,
नजरअंदाज कर जाते।
सब्र की सीमाओं में बंधकर ही ,
सहनशील का चोला पहन जीने का अंदाज बदल ही जाते।
यूँ ही कुछ भी जीवन जीना आसान नही हो जाता।
पल भर में खुशी ,क्षण भर में गमों में बदल जाता।
जीवन कठिन परिस्थिति, संघर्ष समस्याओं में ही उलझ जाता।
प्रभु सुमिरन करने से सहनशील बन जीने का तरीका बदल जाता।
शशिकला व्यास✍️
स्वरचित मौलिक रचना