यूँ न फेंको गुलाल.. रहने दो.!
यूँ न फेंको गुलाल.. रहने दो.!
बे-बजह का बवाल., रहने दो..!
मुझको बेघर न कर., ख़ुदा मेरे,
सबको होगा मलाल, रहने दो..!
आशियाँ ख़ाक हो गये, जिनके,
वो करेंगे कमाल…..! रहने दो।
बस बहुत हो गया, ज़वाबी दौर’,
अब न पूछो सवाल, रहने दो..!
तल्ख़ लहज़े में बात कर डाली,
उसकी इतनी मज़ाल, रहने दो।
चाँद को आशियां बनाओगे,
इक़ पुलावी ख़याल रहने दो।
क्या किया, क्या कुसूर बोलो भी,
कर दिया जो हलाल, रहने दो..!
पंकज शर्मा “परिंदा”