यूँ घेर लेते हैं झोंके उलझनों के मुझको
यूँ घेर लेते हैं झोंके उलझनों के मुझको
तमाम ज़रूरी बातें काम की रह जाती हैं
अंदाज़े बयां ऐसा है सनम तेरी खामोशी का
जो तू नहीं कहता आँखें तेरी कह जाती हैं
—सुरेश सांगवान ‘सरु’
यूँ घेर लेते हैं झोंके उलझनों के मुझको
तमाम ज़रूरी बातें काम की रह जाती हैं
अंदाज़े बयां ऐसा है सनम तेरी खामोशी का
जो तू नहीं कहता आँखें तेरी कह जाती हैं
—सुरेश सांगवान ‘सरु’