“युवाओं के लिए सँदेश”
गीत नहीं तुम, मेरा पढ़ना,
सत्य नहीं, सह पाओगे।
सुविधाओं का, रोना-धोना,
और न अब, कर पाओगे।।
“नीरज” जैसा, भाला फेँको,
ओलंपिक मेँ, नाम करो।
लक्ष्य भेद कर, अर्जुन जैसा,
भारत का, उत्थान करो।।
सुबह देर तक, सोना छोड़ो,
पिज़्ज़ा, बर्गर, त्याग करो।
पियो दूध, वर्जिश करके,
नित ताज़ा, शाकाहार करो।।
योग और सँयम, हो प्रतिदिन,
दम्भ, द्वेष प्रतिकार करो।
स्वप्न उच्च, जो भी देखो, सब,
जीवन मेँ, साकार करो।।
निकलो बाहर, तिमिर-व्यूह से,
नशा-मुक्ति पर, ध्यान धरो।
वीर, धीर, गम्भीर, व्यक्ति बन,
विश्व पटल पर, नाम करो।।
प्रतिद्वंद्विता, सदा रहेगी,
गुरुओं का, सम्मान करो।
मन-मालिन्य, कभी मत लाना,
“आशा” का, सँचार करो..!