युद्ध
घर में गमगीन माहौल है। सब बेचैन हैं । सबका मन भारी है।
“कौन आ रहा है दादी ?”
नन्हा रघु बोला।
“अरे रघु अपने पापा ।” तुरन्त बहन रिमझिम बीच में ही बोल उठी।
“वाह। मेरी जैकेट लाएंगे और ढेर सारे खिलौने व चाकलेट भी। बहुत मज़ा आएगा “वह तालियाँ बजाता हुआ खुशी से उछलने लगा।
दादी यह सुनकर आंचल मुंह में दबाए रोती हुई बाहर चली गयीं।
लेकिन दीदी पापा की तो छुट्टी खत्म हो गयी थी न। तभी तो वे चले गये थे हम दोनों को समझा कर कि तुम दोनों मेरे पीछे से मम्मी का ख्याल रखना उन्हें तंग मत करना।”
नन्हे रघु को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि यहाँ आखिर हो क्या रहा है ?
पापा आ रहे हैं तो ड्राइंग रूम के फर्नीचर को बाहर क्यों निकाला जा रहा है ? दरियाँ क्यों बिछा रहे हैं ?
पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ।
“दीदी”
“हाँ रघु”
“मम्मा कह रही थीं कि जब युद्ध होता है तो हमारे पापा फ्रंट पर दुश्मनों से लड़ते हैं।
“हाँ भैया ”
“पर दीदी ये युद्ध होता क्या है?”
“अरे बुद्धू जब दुश्मन देश की सेना हमारी सेना से बार्डर पर लड़ाई करती है तो वही युद्ध होता है।”
बुआ, राहुल चाचू, दादी, दादा जी सब बहुत उदास लग रहे हैं। ऐसा लगता रहा है जैसे रोए हों। कोई भी रघु को प्यार भी नहीं कर रहा है।और मम्मा… वे तो दिख ही नहीं रही हैं।
अरे मेरी मम्मा कहां है। मुझे जाना है उनके पास जाना है।” नन्हा रघु रुआंसा हो उठा।
रघु दौड़कर अपने कमरे में गया – “मम्मा मेरी जैकेट आने वाली है। वाव! बाहर पापा आने वाले हैं। वो बहुत अच्छे हैं। फिर से छुट्टी लेकर आ रहे हैं आपको पता है ?
श्रुति बदहवास-सी बार-बार अपने होश खो रही थी। अचानक बच्चे के मुख से यह बात सुनकर वह फिर से फफक पड़ी।
श्रुति बहुत सारी महिलाओं से घिरी बैठी थी और सुबक सुबक कर रो रही थी।
“मम्मा किसने डांटा आपको। “रघु अपनी नन्हीं हथेलियों से माँ के आँसू पोंछने लगा।
“अभी पापा आ जाएंगे तो मैं उनसे शिकायत कर दूँगा ठीक है। आप रोओ मत। ”
क्या मालूम इस नन्हे मासूम को कि उसके प्यारे पापा बार्डर पर दुश्मनों से युद्ध करते वक्त नहीं अपितु उस युद्ध की विभीषिका की चपेट में आ कर शहीद हुए हैं जिसे आतंकवाद कहते हैं।
बहन रिमझिम भी माँ को ढूंढती हुई वहां आ पहुंची। अब तो वह भी रो रही थी – “भैया बाहर चल। पापा को तो अंकल लोग एक बाक्स में लिटा कर लाए हैं। ”
“पापा उठ नहीं रहे, बोल भी नहीं रहे। सब कह रहे हैं पापा युद्ध में नहीं आतंकवादियों से युद्ध करते समय शहीद हो गए हैं।”
यह सुनकर रिमझिम के साथ नन्हा रघु भी ज़ोर- ज़ोर से रोने लगा। यह देख कर सबों का दिल पसीज उठा।
पता है रघु शहीद होना मतलब देश के लिए मर जाना होता है। हमारे पापा अब कभी भी नहीं उठेंगे।
माहौल में गम और क्रंदन भरा पड़ा था। किसी में हिम्मत नहीं कि उन्हें ढाढस बंधाए। कोई कैसे समझाए
इन नन्हें बच्चों को कि
आतंकवाद एक ऐसा अंतहीन युद्ध जो अब तक न जाने कितने निर्दोषों का काल बन चुका है। अब इसकी जड़ों पर सीधा प्रहार कर इस युद्ध को समूल उखाड़ फेंकने का समय आ गया है।
“दीदी मैं बला होके इछ आतंकबाद छे युद्ध कलूंगा और इछे माल दूंगा। इछने मेले पापा को माला है”
और रघु ज़ोरों से रोता हुआ रिमझिम से लिपट गया ।
युद्ध अभी जारी है…….
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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