युगों-युगों तक
युगों-युगों तक
माॅं रोती है रो- रो के कहती है
लेकिन अश्रु सबसे छुपाती है
शहीद हुआ अरविंद मेरा
मेरी सांसे फिर क्यों चलती है।
उसकी आहट का आना
मेरा मुझसे सब कुछ छीन जाना
फिर भी मेरी आंखें
उसे दिन भर ढूंढा करती है।
ऐ पलक देखू में मूरत तेरी
कितनी भोली लगती थी सूरत तेरी
तू इतना रोशन नाम करेगा मेरा
तेरे नाम से ही दुनिया
अब मुझको जाना करेगी।
अब बस किस्से है यादों में
तेरी वीरता की बातों में
तू लाल मेरे हो जाएगा अमर
मैं यह कहां थी जानती।
जब तक यह ज़हाॅं रहेगा
जब तक यह दिवस मनेगा
माटी महकेगी नाम से तेरे
इस दुनिया में तेरा नाम अमर रहेगा।
हरमिंदर कौर, अमरोहा (यूपी)