यार मुबारक ईद….: दोहे
‘यार मुबारक ईद..’
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बेकसूर का ही गला, काट रहा ईमान.
आयत पढ़ें कुरान की, तभी बचेगी जान..
जिनको मानव बम बना, भेजा हिन्दुस्तान.
वही मदीने को जला रहे क्रूर शैतान..
अलबेले अंदाज की, दुनिया बनी मुरीद.
ढाका में बकरीद बन, हुई मुबारक ईद..
गला काटना छोड़कर, गले मिले इंसान.
मज़हब हो इंसानियत, कहती यही कुरान..
वतनपरस्ती की सदा, अपनों से उम्मीद.
रहें सनातन हम सभी, यार मुबारक ईद..
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सप्रेम …..
अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
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