यार मंजिल मिरा है नहीं बेवफ़ा।
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रास्ते हर दफा हो रही है खफा।
यार मंजिल मिरा है नहीं बेवफ़ा।
मैं थका कब कहो राह चलते मगर।
ना वफ़ा हो सकी यार मेरी डगर।
जिंदगी तक लगाया हूं मैं दांव पर।
दर्द था पर नजर ना गया घाव पर।
था कमी तो नहीं मेहनत में मगर।
यार किस्मत ही मुझसे हुई है खफा।
रास्ते हर दफा हो रही है खफा।
यार मंजिल मिरा है नहीं बेवफ़ा।
बाद मुद्दत के वो यार हमको मिली।
बाग़ में गुल नई हां नई सा खिली।
तितलियों सा उसे मैं पकड़ता रहा।
और टिड्डे सा वो तो अकड़ता रहा।
था लहर जोड़ पर नाव अड़ता रहा।
है लहर बावफ़ा पर किनारा खफा।
रास्ते हर दफा हो रही है खफा।
यार मंजिल मिरा है नहीं बेवफ़ा।
©®
दीपक झा रुद्रा