यार.पुराने दिलदार
यार पुराने दिलदार नहीं मिलते हैं बार बार
चाहे कर लो तुम यारों प्रयत्न लाख हजार
अनमोल हीरे हैं वो जीवन रुपी खजाने के
मनके हैं खुदा के निधि अमूल्य खजाने के
पल भर वक्त लगे उन्हें जीवन में मिटाने में
ताउम्र बीत जाती है यारों के यार बनाने में
महफिल जमती नहीं बिना यार दिवानों के
कभी शमाँ जलती देखी है बिन परवानों के
अंजुमन सजती नहीं यारों बिन मयखानों में
यारों संग चेहरे खिलें ,मय संग मयखानों में
जैसे ग्राहकों बिन रौनक ना दिखे बाजारों में
वैसे ही दीप बुझ जाएं बिन यार गलियारों में
मिल बैंठें यार दुख- सुख दिलों के खुलते हैं
दिलों में दफन राज बंद पिटारे से खुलते हैं
दोस्ती निस्वार्थ निसंकोची रिश्ता जीवन का
सहयोगी ,संयोगी,विश्वासी रिश्ता जीवन का
जरूरत में बिन मांगे कंधे से कंधा मिलता है
सुख में सागर,दुख में गागर बनके उभरता है
बगिया के फूलों सा खूब खिलता महकता है
जीवन को हर्षित- पुलकित रंगों से रंगता है
कृष्ण-सुदामा,कर्ण-दुर्योधन बड़े उदाहरण हैं
अमीरी-गरीबी ,स्तर-अस्तर बिना आवरण हैं
रंक-राजा की पदवी भी नहीं कभी दिखती है
दोस्ती जीवन मूल्य मानकों पर ही निभती है
दगाबाज यार की दगाबाजी होती मंजूर नहीं
यार की खुद्दारी से यारी कभी होती दूर नहीं
जब तक खुदा क सृष्टि जग में चलती रहेगी
यारों की सच्ची यारी जगत में निभती रहेगी
मेरा यार जो मुझ पर यूँ मेहरबान दिलदार है
मेरा जीवन यार की यारी से पूर्ण गुलजार है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत