यार कहाँ से लाऊँ……
यार कहाँ से लाऊँ……
वो यार कहाँ से लाऊँ ???
स्कूल में जिन संग ,
आँखमिचौली खेली थी ।
इसकी अब्बा ,इसकी कुट्टा,
वही सब सखी सहेली थी ।
खेल का मैदान हो या
परीक्षा का हो टाइम,
एक-दूसरे का साथ देते थे ,
ऐसे हमारे दोस्त होते थे ।
वो दोस्त कहाँ से लाऊँ ???
कॉलेज गए तो कुछ संग रहे,
और कुछ छूट गए ,
तो कुछ नए भी बन गए ।
उन मित्रों संग हम ,
उनके रंग में रंग गए ।
कभी पार्टी में,
तो कभी शॉपिंग संग गए ।
एक -दूसरे की टांग खींच,
देखो हम बड़े हो गए ।
रोज़गार की तलाश में ,
हम सब कुछ भूल गए।
अब वो यादें हमारी ,
दिल ही दिल मे रह गई ।
वो यार कहाँ से लाऊँ ???
जिन संग मैं एक बार,
फिर से जिऊँ ,और कुछ यादें बुनउँ,
यार फिर इसे जीवन सत्य मानकर ,
इसमें आगे बढूँ ,
और जब अकेला महसूस करूँ,
तो फिर उन यादों को ,
एक बार और जिऊँ ।
वो यार कहाँ से लाऊँ …..
वो यार कहाँ से लाऊँ …..
जीवन के अंतिम पड़ाव पर,
फिर से मैं मुस्काउं ….
वो यार कहाँ से लाऊँ …..
उनकी याद कहाँ से लाऊँ ….