याद हो आया !
2222-1222-1222-1222
जब देखे मर्ज वह मेरा, शिफाया याद हो आया।
की दौर-ए- मुफ़लिसीयों में, बकाया याद हो आया।।
हम उनसे प्यार करने में, खुदा को भूल बैठे थे।
कांपी जब रूह मेरी तो, खुदाया याद हो आया।।
सेतमगर के सितम से ही, दिखा यह बेवफा मंज़र।
जब खाई ठोकरें तब वो, अदाया याद हो आया।।
जो भी मैं फ़क्र करता था, उन्ही कमसीन नखरो से।
बामुश्किल बच के निकला तो, अमाया याद हो आया।।
मैं खोया ख़्वाब में जो था, बहुत ही दूर तक गहरा।
खोली जब आँख अपनी तब, नुमायाँ याद हो आया।।
वो चक्कर मे सदा फ़स कर, लखेंगे लाभ औ घाटा।
जो था तेरा व मेरा भी, सराया याद हो आया।।
ये जो तूने भुलाया है, नही इस बात का अब गम।
जब दुनिया से हुए रुखसत, सुकाया याद हो आया।।
तू मेरी थी मगर अब तो, बनेगी ना कभी हमदम।
सेयासत सीख ली तो अब, किराया याद हो आया।।
तेरा अनमोल सा जीवन, रहा बेमोल सा बनकर।
तेरी साँसे, तिरी बातें, व साया याद हो आया।।
*शिफाया:- इलाज
*मुफ़लिसी:- ग़रीबी, निर्धनता
*अदाया:- भुगतान
*अमाया:- माया से रहित
*नुमायाँ:- ज़ाहिर, व्यक्त, प्रकट, उभरा हुआ
*सराया:- ब्रिगेड, कंपनी, टुकड़ी
*सुकाया:- सुंदर शरीर
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १२/०१/२०२२)