याद हूं ना मैं
हिंदी कहानी –
याद हूँ न मैं ?
जब भी उनकी याद आती है तो कॉलेज के दिनों को बहुत मिस करने लगती हूँ , दुःख पीने की नहीं जीने की चीज है , क्या पता था कि वो दुःख को जी रही है या दुःख उन्हें ! जब भी उन्हें देखा शांत और सौम्य देखा , बासंती फूलों से लदी एक डाली मुंडेर पर से झाँक रही थी । मैंने मुड़कर देखा , वह मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी । मैंने एक भरपूर निगाह उनके चेहरे पर डाली और फिर बासंती फूलों कि डाली को देखा । सांझ के रक्तिम प्रकाश में वह भी मुस्कुरा रही थी , मानों मुझे अलविदा कह रही हो । कुछ महीनों का सफ़र आज अंतिम पड़ाव पर था , पलकों पर दो मोती छलक आये , उन्होंने हाथ हिलाया ।
कॉलेज के दिनों में पढ़ी थी एक किताब मुझे चाँद चाहिए , जिस पर पड़ी धूल झाड़ते झाड़ते याद हो आयीं हैं मिस नीलिमा , ज़िन्दगी भी कितनी अजीब होती है न ! ना हम कुछ लोगो से जुदा हो पाते हैं न ही उनसे जुड़ी यादों से , मिस नीलिमा ने ही तो दी थी मुझे वो किताब जिसे एक नहीं दो नहीं न जाने कितनी बार पढ़ चुकी हूँ , जब भी ज़िन्दगी से नाराज होती हूँ या इसी किताब को पढ़ने बैठ जाती हूँ और उनका जीवंत और आदर्श से भरा चेहरा सामने आ जाता है । आज याद हो आई है वह सुबह जब पहली बार कॉलेज के गलियारे में मेरा उनसे सामना हुआ था । सफ़ेद रंग की किनारी लगी साड़ी में और आँखों पर काले रंग के फ्रेम का चस्मा लगाये कितनी पृथक नजर आ रही थीं वो कॉलेज की अन्य प्राध्यापिकाओं से , शायद उन्हें भी मेरा विनम्र मुस्कुराता अभिवादन पसंद आया था इसलिए वो भी हौले से मुस्कुरा दी थी । मगर ये मुस्कान कितनी दुर्लभ थी इसका पता मुझे कुछ ही रोज में चल गया , जिसे देखने के लिए सभी लड़कियां तरसती , पर मैंने बहुत कम दिनों में उनका अपनापन हासिल कर लिया , शायद यही वजह रही कि कॉलेज में सभी छात्राओं के बीच मुझे सम्मान का पद मिलने लगा था । यही सब सोचते सोचते पहुँच गयी हूँ मैं याद के एक छोटे से शहर में मैं यानि काव्या कॉलेज की एक डरपोक शर्मीली सी छात्रा जिसे लोग दुनिया के किसी और ग्रह से आया हुआ सा समझते थे , हाँ ये मैं ही तो हूँ ! मिस नीलिमा के घर के दरवाजे की डोरबेल बजाती हुई , मिस नीलिमा ने ही दरवाजा खोला था । ये मेरा प्रथम अनुभव था किसी प्राध्यापिका के घर जाने का वो सामने खड़ी थीं , वहीं सफ़ेद साड़ी और चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान , मगर बिल्कुल शांत व्यक्तित्व , जैसे सारी मुश्किलों का समाधान अपने आँचल में बाँध कर रखा हो उन्होंने उन्होंने मुझे एक कुर्सी दी और खुद अन्दर की तरफ चली गयी , गर्मी लगे तो पंखा चला लेने का स्वर मेरे कानों में आया और मैं पंखे का स्विच ढूंढने में व्यस्त हो में गई कि तभी मेरी नजर स्टडी टेबल पर रखे एक फोटो फ्रेम पर पड़ी कितना सलोना और सुदर्शन युवक था चित्र में बोलती सी आँखें और मिस नीलिमा भी तो खड़ी थी युवक के ठीक बायीं तरफ । शायद किसी नदी के
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पुल पर खड़े थे दोनों , मन जैसे नदी कि उन्ही लहरों में डूबने उतराने लगा , तो क्या ये वहीं हैं ? जिनसे मिस नीलिमा का विवाह हुआ था , पर नियति को कुछ और ही मंजूर था । कितनी बातें सुनी थी मैंने कॉमन रूम में सहपाठिनियों से , कोई कहती शायद उनके पति उन्हें छोड़कर चले गए होंगे तो कोई उनके इस दुनिया में न होने की काल्पनिक कथा का वर्णन करतीं । खैर जो भी हो अवश्य दुःखद रहा होगा , अक्सर लोग जिन्हें रहस्यमयी समझते हैं उस घटना को बयान न करने के पीछे कितना गहरा दुःख छिपा होता है इसे उस दुःख को जीने वाले ही समझ पाते हैं । मुझे सोच में डूबा पाकर उन्होंने टोका , तो पूरे हो गए तुम्हारे सारे नोट्स ? मैंने शीघ्रता अपनी डायरी निकाली और उन्हें पढ़कर सुनाने लगी दिन गुजरने लगे और मैं रोज थोडा थोड़ा करके उनके जीवन के बारे में जानने लगी । उनकी दिनचर्या , उनका पुस्तकों से लगाव , लेखन में गहरी रुचि , गीतों के प्रति आकर्षण इत्यादि । उनके पिता इलाहाबाद के बैंक में ब्रांच मैंनेजर थे जो कुछ ही समय बाद रिटायर होकर उनके पास आकर रहने वाले थे । माँ – पिता दोनों के आने कि खबर सुन मन को राहत महसूस हुई । आखिर कोई तो हो जो घर में प्रवेश करते ही बड़ी बेसब्री से प्रश्न करे आज बड़ी देर लगा दी तुमने ! क्या ज्यादा काम आ गया था ? मेरे ऐसा कहने पर वो जरा उदास हो गयीं , फिर भी उन्होंने अपना चेहरा भाव शुन्य बनाये रखा । जब भी मेरे घर के आर्थिक संकट कि काली परछाई उन्हें मेरे चेहरे पर दिखाई देती तो वो बड़े स्नेह से मेरी पीठ थपथपा कर कहतीं , जीवन भले ही युद्ध संघर्ष अथवा द्वंद हो हमे प्रयासरत रहना है , उनके बैठक की नीली दीवार पर लिखा देखा था मैंने- Miles to go before I sleep . एक दिन उनके घर पहुंची तो एक नयी सम्भावना मेरा इंतज़ार कर रही थी । गृहविज्ञान की प्राध्यापिका मिसेज मीरा बिस्वाल अपने चार वर्षीय बेटे के साथ मेरी ही प्रतीक्षा में बैठी थी । मुझे देखते ही मिस नीलिमा बोलीं , यही है अपने सुकुमार की नयी टीचर । फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कहने लगीं कल से सुकुमार को पढ़ाना शुरू कर दो । मैंने आभार की मुद्रा में पहले उन्हें देखा फिर मिसेज मीरा पर अपनी दृष्टी टिका दी . You seem to be bright student . I hope you will manage my playful sun . कहकर वो मुझे सुकुमार की किताबें दिखाने लगीं । दो सौ रुपये माहवार पर मुझे एक ट्यूशन मिल गया था और एक उम्मीद कि किरण जो जीवन में आस्था बनाये रखने के लिए पर्याप्त थी । मिस नीलिमा के
घर पर ही मैं सुकुमार को पढ़ाया करती ताकि मिसेज मीरा की गृहस्थी में कोई व्यवधान न हो फिर दोनों घरों के बीच ज्यादा फासला भी न था । सुकुमार के पापा पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे जिन्हें मैंने एक बार देखा था जब वो सुकुमार को मिस नीलिमा के घर पहुँचाने आये थे । इधर सुकुमार के साथ मेरी घनिष्ठता बढ़ती जा रही थी , कभी कभी तो मैं उसे अपने घर ले जाती और घंटो उसके साथ बिताती न जाने कितने मनोरंजन के साधन जूटा डाले थे हम सब घरवालों ने उसके लिए । वह भी तो मुझे मौसी बुलाने लगा था । मिसेज मीरा एक दिन कचोरियों और छोलें बना ला यीं तो हम सबने छत पर पिकनिक का लुत्फ़ उठाया । शार्मे सुहानी हो चली थी जैसे जीवन की कुरुपता धुंधली होकर एक नया चित्र प्रस्तुत कर रही हो मगर एक सुबह सब बदल गया जैसे किसी ने कैनवास पर बन रहे सुन्दर दृश्य पर काली स्याही पोत दी हो और यथार्थ की भयावहता मेरे
अन्दर हाहाकार करने लगी । एकाएक लोगों का शोर आसमान को छूने लगा , हम सब बालकनी में जा खड़े हुए , सामने मुख्य मार्ग पर एक भीषण हादसा हुआ था । हम बाहर जाने को उद्यत हुए तो पिताजी ने डांटते हुए
रोक दिया । थोड़ी ही देर में एक हृदयविदारक समाचार व्याप्त हो गया कि तेजी से आते एक ट्रक ने एक मोटर साइकिल को टक्कर मारी है जिसमे पीछे बैठी महिला की सड़क पर ही मौत हो गयी और बाइक चालाक को अस्पताल में भर्ती किया गया है । पिताजी आकर बोले , तुम्हारे ही कॉलेज की मिसेज बिस्वाल हैं जिनकी मृत्यु हुई है । जमीन और आसमान जब दोनों एकाकार हो जाएँ तो शून्य में ताकने के सिवा कुछ नहीं बचता । दोपहर होते होते सब इंस्पेक्टर तेजस्वी बिस्वाल की मौत कि खबर पूरे शहर में आग कि तरह फ़ैल चुकी थी , उत्तेजित भीड़ ने मौके पर ही ट्रक को जला डाला , पुलिस ने ड्राईवर को अधमरी हालत में दुर्घटना स्थल से गिरफ्तार किया पर उसका साथी पहले ही फरार हो चूका था , अनहोनी घट चुकी थी । अगले रोज के लिए शहर की तमाम दुकानों और अनुष्ठानों को बंद कर दिया गया और पुलिस ने ट्रक जलाने वालों कि धरपकड़ शुरू कर दी , पुलिस डिपार्टमेंट ने जब अपने प्रिय सब इंस्पेक्टर को अंतिम विदाई दी तो पूरा शहर रो पड़ा । तीसरे दिन कॉलेज में मिसेज मीरा के आकस्मिक निधन पर शोकसभा रखी गयी , स्टाफ रूम की गहमागहमी को देख मैं मिस नीलिमा के पास जाने का साहस न कर सकी पर जब प्रार्थना सभा में उन्होंने अपनी प्रिय सखी का जीवन वृत्तान्त पढ़ कर सुनाया तो नेत्र सजल हो उठे । उनकी एकमात्र सखी अचानक दुनिया को अलविदा कह चली गयी थी और पीछे छोड़ गयी थी मौत के खेल से अपरिचित एक नन्हे बालक को जो बेसब्री से अपने मम्मी पापा के घर लौटने का इंतज़ार कर रहा था । कुछ लड़कियों से मालूम हुआ कि मिसेज मीरा के ससुराल और मायके पक्ष में कोई ऐसा नहीं जो नन्हे सुकुमार की जिम्मेदारी लेने को तैयार हो इसलिए शायद उसे किसी शिशु गृह में भेज दिया जाएगा । आठ दस रोज बाद जब मिस नीलिमा से मुलाकात हुई तो हम दोनों के अश्रु सुख चुके थे । नियति का कठोर प्रहार मनुष्य को किस तरह सबल ब नाता है ये मैंने उस दिन महसूस किया । सकुमार भी वहीं था तो क्या सचमुच कोई उसकी जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं ? जब मैंने मिस नीलिमा से पूछा तो उन्होंने बताया कि उसके दादाजी मानसिक रोगी हैं और और किसी अस्पताल में भर्ति हैं और उनका दूसरा पुत्र विदेश में रहकर पढाई कर रहा है जिससे किसी भी प्रकार कि आशा रखना व्यर्थ है । सुकुमार मुझे देखते ही घर जाने की जिद्द करने लगा पर मिस नीलिमा ने मुझे पहले ही सचेत कर दिया था कि मैं उसके सामने सामान्य रूप से व्यवहार करूँ ताकि उसके कोमल हृदय पर किसी किस्म का कुठाराघात न होने पाए इसलिए मैं ह्रदय को कड़ा कर बहुत देर उसे बहलाती रही ।
उस दिन कॉलेज में और दिनों की अपेक्षा अधिक सरगर्मी दिखी छात्राएँ गुट बनाकर किसी गंभीर विषय पर चर्चा कर रही थीं , सभी के चेहरे फीके और उदास लग रहे थे । मेरे प्रश्न करने पर संध्या ने नोटिस बोर्ड की तरफ इशारा किया , मैंने पास जाकर टाइप किये शब्दों को गौर से पढ़ा , We are going to give a small farewell to
our favourite Lecturer madam Nilima Soni for she has taken transfer from the college . सूचना पढ़ते ही मेरा माथा चकराने लगा , एक सवाल मन में बुरी तरह चल रहा था आखिर क्यूँ ? क्यूँ हर वो शख्श मुझे छोड़कर चला जाता है जिससे मैं बेहद प्यार करने लगती हूँ ? शनिवार कि शाम तक तो उन्होंने मुझसे इस सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहा था या शायद कहने के लिए कोई उपयुक्त अवसर न मिला हो , सोचकर मैं शाम को उनसे मिलने घर की तरफ चली । आजकल सुकुमार बहुत उदास रहने लगा था । मेरे बहुत खुशामद करने पर भी वो पढ्ने को तैयार न होता था बस घर जाने की जिद्द और मम्मी पापा की रट मिस नीलिमा ही उसे कई तरह के प्रलोभन दे पुचकारती और अपनी निगरानी में रखतीं ताकि उसे किसी बात का पता न चले । मैंने सुकुमार को गोद लेने कि सारी प्रक्रिया पूरी कर दी है , वो ठन्डे स्वर में बोलीं । मेरा कंठ आद्र हो उठा , लेकिन आपके ट्रान्सफर की खबर ? हाँ , यहाँ अब रहना संभव नहीं , पापा के पास इलाहाबाद जा रही हूँ सुकुमार को लेकर कुछ दिन वहां रहूंगी फिर आस – पास के किसी कॉलेज में नियुक्ति हो जायेगी , उन्होंने आहत स्वर में कहा , उन्हें इतना विचलित मैंने पहली बार देखा था । हम दोनों धीमे स्वर में बातचीत कर ही रहे थे कि सुकुमार अपने खिलौने छोड़ मेरा हाथ खींचने लगा और अपने साथ खेलने की गुहार लगाने लगा मैंने उसे गोद में उठा लिया और उसका माथा और गाल सहलाने लगी , तभी मिस नीलिमा ने उससे कहा , मैं तुम्हारी मम्मी हूँ न ? मुझे एक बार मम्मी बोलो , उसने अपनी बालसुलभ जिज्ञासा से कहा , आप तो आंटी हो , मेरी मम्मी कब आएंगीं ? मैंने शरारत से मिस नीलिमा के गले मैं बाहँ दाल दी और उसकी तरफ मुस्कुराई , अच्छा ! सुकुमार कि नहीं मेरी मम्मी , अब ठीक है ना ? उसकी निर्दोष आँखें चमक उठी , नहीं मेरी मम्मी मेरी मम्मी कहकर वह मिस नीलिमा लिपट गया , उनकी आँखे बरस पड़ी मगर दुःख नहीं ममता के आवेग से , मैंने उनके कंधे पर सर टिका दिया । ये मेरी ज़िन्दगी कि सबसे अनूठी तस्वीर है जिसे किसी भी कैमरे में कैद नहीं किया जा सका मगर ये आज भी मेरी यादो में सुरक्षित है । मिस नीलिमा , सुकुमार और मैं ! अरे , कहीं भूल तो नहीं गए आप ? मैं यानि काव्या …
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साभार – लेखिका कोमल काव्या