याद तुम्हारी
याद तुम्हारी फिर आई,
आज बैठ अमराई में।
कितना फीका सा लगता है,
सावन भी तन्हाई में।
नहीं सुगंध फूलों में अब,
पंखुड़ियों में वो रंग नहीं,
जाने कैसे जीता है मधुकर,
कलियों को खिलने का ढंग नहीं,
अक्स तुम्हारा दिख जाता है,
फूलों की परछाई में।।
वही है पीपल की छैंया,
वही शाम तन्हाई की,
वही मोगरे की खुशबू है,
वही पवन पुरवाई की,
रो लेता हूं यहीं बैठकर,
प्रीतम तेरी जुदाई में।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम